Monday 26 February 2018

कविता - नए शहर की वो पहली रात

कविता - नए शहर की वो पहली रात

गाँव की भुखमरी ने 
जब किया था परेशान,
रोज़ खाली पेट सोना 
पड़ती थी कोई आदत जान।
अनजान शहर से जब हुई मुलाकात,
याद है मुझको आज भी,
नए शहर की वो पहली रात।।

बिना टिकट रेल से जब मैं,
शहर के स्टेशन था पहुंचा,
टीटी साहब ने भी गरीबी पहचान,
मुझको था धर दबौचा,
किसी तरह मिन्नतों से फिर बनी बात,
याद है मुझको आज भी,
नए शहर की वो पहली रात।।

काम की तलाश में घर से बेघर हुआ,
पूरा घर-परिवार छोड़कर मैं दर-दर फिरा।
थी कड़ाके की सर्दी और भूख भी विकराल,
मैं किसान था उस रात बड़ा बदहाल,
याद है मुझको आज भी,
नए शहर की वो पहली रात।।

खेती छोड़ अब शहर में मज़दूरी कर रहा हूँ,
ज़्यादा तो नहीं पर थोड़ा ही सही,
अपने परिवारजन का पेट तो भर रहा हूँ।
खेत-खलिहानों की आज़ादी वाली,
फैक्ट्री की मजदूरी में कहां है बात,
तभी याद आती है मुझको आज भी,
नए शहर की वो पहली रात।।

- बोगल सृजन

Friday 2 February 2018

चाय की चुस्कियाँ और देश के हालात पर चर्चा

चाय की चुस्कियाँ और देश के हालात पर चर्चा

चाय की चुस्कियाँ लेते किसी महफिल में,
चर्चाएँ देश के हालातों पर अक्सर होती हैं,
जब देश की प्रगति में बाधा बताया जाता है,
कालाबाजारी करते राशन डिपो वाले को,
या किसी घूंसखोर सरकारी कर्मचारी को।
इसमें तो कुछ गलत नहीं है मगर
उसी महफ़िल लौटते वक्त उनमें से कोई एक जब,
घर के किसी कार्यक्रम के लिए उसी राशन डिपो से,
सस्ती चीनी खरीदने के जुगाड़ की बात करता है,
या कोई दूसरा ट्रैफिक सिग्नल तोड़ने के बाद
500 के जुर्माने की जगह 100 की घूंस थमाता है,
क्या तब राष्ट्र का विकास रथ रुक नहीं जाता है?

चाय की चुस्कियाँ लेते किसी महफिल में,
चर्चाएँ देश के हालातों पर जब होती हैं,
तो देश के नाम पर कलंक बताया जाता है,
महिलाओं के लिए असुरक्षित होते महानगरों को
उनपर नित-दिन हो रहे यौन हमलों को।
मगर उसी महफ़िल से निकलते हुए राह में,
किसी नुक्कड़ पे कॉलेज से लौटती छात्रा या
अपने काम से घर लौटती किसी महिला के,
वस्त्रों पर जब टीका टिप्पणी की जाती है,
या उनपर फब्तियां कसी जाती हैं,
तब क्यों सहसा ही देश का कलंक बदलकर,
सीने पर सजे किसी मैडल सा प्रतीत होता है।।

चाय की चुस्कियाँ लेते किसी महफिल में,
चर्चाएँ देश के हालातों पर जब भी होती हैं,
तो जात-पात व धर्म के नाम पर रोज़ हो रही,
मार-काट, दंगों व आगजनी को,
राष्ट्र की एकता व अखण्डता के लिए
बहुत बड़ा खतरा बताया जाता है।
मगर असल जिंदगी में सभी धर्मों द्वारा बताया,
मानवता, प्रेम व सौहार्द का मार्ग छोड़,
मन्दिर-मस्जिद की राजनीति में आकर,
ऊँच-नीच की घृणित विचारधारा जतलाकर,
जातिसूचक शब्दों से दूसरों को नीचा दिखाकर,
फिर कैसे राष्ट्र सच में अखण्ड बन पाता है।।

इसलिए चाय की चुस्कियाँ लेते किसी महफिल में,
चर्चा देश के हालातों पर गर फिर से हो जाये,
तो देश की समस्याओं के मद्देनजर रखते हुए
पहले एक नज़र स्वंय पर भी फेर ली जाए,
ताकि किसी और को बदलने से पहले,
खामियां दूर कर खुद को ही बदला जाए।
रोज़ राह में अपमान का घूंट पीती,
अपनी बहन बेटियों के सम्मानित जीवन हेतु,
सम्मान दूसरों की बहन, बेटियों को दिया जाए।
इंसानियत का पाठ पढ़ाते धर्मों के प्रतीक,
किसी मन्दिर, मस्जिद या गुरुद्वारे की रक्षा से पहले,
पहले सिर्फ इंसानियत की रक्षा तो की जाए।।

#बोगल_सृजन