Saturday 20 January 2018

अक्ल बड़ी या भैंस

अक्ल बड़ी या भैंस

अक्ल बड़ी या भैंस जब भी सुनाया जाता है,
एक प्रश्न मेरे मन में आ टकराता है।
कि लगातार हमें दूध उपलब्ध कराती,
क्यों बेचारी भैंस पर प्रश्न उठाया जाता है।

मान लिया कि अक्ल होती नहीं
अन्य किसी पशु की तरह भैंस के पास,
पर प्रश्न तो ये भी निकल आता है,
कि भला कौन जानवर कॉलेज में पढ़ने जाता है।

गर बात होती पशुओं के बल या किसी गुण की,
तो फिर भी कुछ समझ में आता है,
मगर अक्ल के मुहावरे में कैसे घुसी भैंस,
ये तो सिर के ऊपर से ही निकल जाता है।


#बोगल_सृजन

Tuesday 16 January 2018

मैं कैसे भूल जाऊँ

मैं कैसे भूल जाऊँ

कभी-कभी सोचता हूँ ऐसा मैं,
कि खाओ-पियो और ऐश करो की संस्कृति,
जो आज हावी है लगभग हर किसी पर
उसी पर चलते हुए मैं भी, 
न परवाह करूँ औरों के दुख-तकलीफों की,
व अपने घर-परिवार तक सीमित रहते हुए,
बस अपने ही काम से काम रखूँ।

कभी-कभी सोचता हूँ ऐसा मैं,
कि हाड़तोड़ परिश्रम के उपरांत भी
आधे पेट भोजन प्राप्त करते किसान को छोड़,
किसी महंगे रेस्तराँ में खाना खाने
व शॉपिंग मॉल्स से खरीददारी करने के बाद,
किसी गरीब को एक सिक्का देकर बस,
अपनी इंसानियत का फर्ज मैं भी निभा लूँ।

मगर इस निष्ठुरता से पेश आने की,
गवाही देता ही नहीं ज़मीर,
क्योंकि जिस तरह से एक बहशी,
स्वभाव से मजबूर वहशत फैलाना भूलता नहीं,
एक पक्षी मदमस्त नीले आकाश में,
पंख फैलाकर उड़ना भूलता नहीं,
तो इंसान होकर मैं इंसानियत कैसे भूल जाऊँ।

आजतक सुने हर एक धर्म-ग्रन्थ ने,
सन्त, ऋषि-मुनि या पीर-पैगम्बरों ने,
और हमारे माँ-बाप व शिक्षकों ने,
जो बचपन से हमें सिखाया है, 
हर इंसान से प्रेम व भाईचारे से रहना,
हर कमजोर और ज़रूरतमंद की मदद करना,
ये पढ़ी-पढ़ाई, रटी-रटाई बातें मैं कैसे भूल जाऊँ।

बोगल सृजन 

Wednesday 10 January 2018

बस_एक_दिन

बस_एक_दिन

ज़रा सोचिए अगर बस एक दिन,
दुनिया भर के सब  मेहनतकश,
किसान, मज़दूर व अन्य कामगर,
जो मगन रहते हैं दिन-रात,
पूरी निष्ठा से अपने-अपने कामों में,
हाड़तोड़ परिश्रम के उपरांत जो कमाते हैं,
परिवार के लिए दो वक्त की रोटी
व मेहनत के गुरूर से उपजी इज़्ज़त।
वो सब लोग, 
पेट की आग की परवाह न करते हुए,
मना कर दें काम करने से,
अपने-अपने उन मालिकों को, 
जिन्होंने मेहनत के नाम पर सीखा है बस,
पुरखों की अर्जित पूंजी से मुनाफा कमाना।
अगर, 
बस एक दिन पहिये जाम हो जाऐं,
छोटे-बड़े सभी कल कारखानों के,
पूरी दुनिया के इस कौने से उस कौने तक,
जो निर्माण करते हैं सूई से हवाई जहाज तक का।
दुनिया भर की स्थापित अर्थव्यवस्थायों की,
सच में चूलें हिल जाएं,
दो कौड़ी के दिखने वाले कामगार,
अगर सच में बस एक दिन काम करने न आएं।
शायद तब ही महलों में रहकर, 
किसान व मज़दूर के बारे फैसले लेने वालों को,
ज़्यादा नहीं पर कुछ तो उनकी कीमत समझ आये।।

© बोगल_सृजन

Sunday 7 January 2018

मेहनत_ईमानदारी_के_किस्से

मेहनत_ईमानदारी_के_किस्से

माना कर्म को ही धर्म कहते,
व मेहनत-ईमानदारी की बात करते,
बहुत से किस्से कहानियाँ,
बचपन से ही पढ़े होंगे हमने,
मगर दिनभर खून-पसीना बहाने के बाद,
आधे-पेट भोजन से गुज़ारा करते,
भूमिहीन किसान व मज़दूर की दशा देख,
सब किस्से-कहानियाँ हवा होते दीखते हैं।

वैसे कहने को तो बहुत सम्मान मिलता है,
बदन झुलसाती गर्मी व हड्डियाँ सुन्न करती सर्दी में भी,
हर प्रकार के अनाज, फल व सब्जियां उगाते,
हमारे देश के अन्नदाता किसान को,
मगर महीनों की हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी,
लगातार बढ़ते कर्ज़ के बोझ से त्रस्त हो उनको,
जब सल्फास चाटते या फाँसी पर झूलते देखते हैं,
परिश्रम के सब किस्से-कहानियाँ हवा होते दीखते हैं।

वैसे तो बड़ी-बड़ी गगनचुंबी ईमारतें,
सड़कें, पुल या कोई शॉपिंग मॉल,
जो बनते हैं मज़दूर की दिनरात की मेहनत से,
मगर उनकी ही मेहनत व कारीगरी से तैयार,
चमचमाते किसी शॉपिंग मॉल या भवन में,
उसी गरीब मज़दूर को जब घुसने नहीं दिया जाता,
तो मेहनत-ईमानदारी का महिमामंडन करते,
सब किस्से-कहानियाँ हवा होते दीखते हैं।

वैसे तो दुनिया के ऐशोआराम के लिए,
छोटी सी चीज़ से लेकर हवाई जहाज तक,
कारखानों में तैयार किया जाता है,
मज़दूरों के अथाह परिश्रम व कुशलता के द्वारा ही।
मगर जब दिन-रात के परिश्रम के पश्चात भी,
उन्हीं द्वारा निर्मित वस्तुओं का इस्तेमाल तो दूर, 
जब छूने तक कि हैसियत न हो तो,
मेहनत के सब किस्से-कहानियाँ हवा होते दीखते हैं।

#बोगल_सृजन