क्या किसी को इंसान चाहिए?
किसीको राम चाहिए, किसीको रहमान चाहिए।
परेशान हूँ यही सोचकर , क्या किसीको इंसान चाहिए?
मंदिर का घड़ियाल किसीको, गिरिजा का किसीको क्रॉस चाहिए,
गुरूद्वारे के शब्द किसीको, मस्जिद की किसीको अज़ान चाहिए।
इंसानों की लाशों पर चढ़कर, इसको मस्ज़िद, उसको मंदिर महान चाहिए,
परेशान हूँ यही सोचकर , क्या किसीको इंसान चाहिए?
परेशान हूँ यही सोचकर , क्या किसीको इंसान चाहिए?
मंदिर का घड़ियाल किसीको, गिरिजा का किसीको क्रॉस चाहिए,
गुरूद्वारे के शब्द किसीको, मस्जिद की किसीको अज़ान चाहिए।
इंसानों की लाशों पर चढ़कर, इसको मस्ज़िद, उसको मंदिर महान चाहिए,
परेशान हूँ यही सोचकर , क्या किसीको इंसान चाहिए?
मस्ज़िद से आये या गुरूद्वारे से, भूखे को तो अन्न चाहिए,
हिन्दू दे या ईसाई देदे, ठण्ड से ठिठुरते को तो कपडा चाहिए।
अस्पताल में तड़पते धर्म के ठेकेदार ने कब डॉक्टर से कहा,
कि खून उसको किसी धर्म विशेष का ही चाहिए।
बाहर आते ही जाने क्यों, फिर उसे हिन्दू, सिख या मुसलमान चाहिए।
परेशान हूँ यही सोचकर , क्या किसीको इंसान चाहिए?
हिन्दू दे या ईसाई देदे, ठण्ड से ठिठुरते को तो कपडा चाहिए।
अस्पताल में तड़पते धर्म के ठेकेदार ने कब डॉक्टर से कहा,
कि खून उसको किसी धर्म विशेष का ही चाहिए।
बाहर आते ही जाने क्यों, फिर उसे हिन्दू, सिख या मुसलमान चाहिए।
परेशान हूँ यही सोचकर , क्या किसीको इंसान चाहिए?
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