इस झूठ के मायाजाल में,
झूठ का आडम्बर उतारकर,
माना कठिन होगा जीना,
फिर भी
किसी अन्य से तो न सही,
चलो एक दिन स्वयं से सत्य बोलते हैं।।
झूठ का आडम्बर उतारकर,
माना कठिन होगा जीना,
फिर भी
किसी अन्य से तो न सही,
चलो एक दिन स्वयं से सत्य बोलते हैं।।
माना सहज न होगा
झूठ के मकड़जाल से अलग होकर,
अपनी सत्यता से परिचित होना,
फिर भी प्रयास करके,
एक दिन स्वंय को तौलते हैं।
चलो स्वयं से सत्य बोलते हैं।।
झूठ के मकड़जाल से अलग होकर,
अपनी सत्यता से परिचित होना,
फिर भी प्रयास करके,
एक दिन स्वंय को तौलते हैं।
चलो स्वयं से सत्य बोलते हैं।।
माना तनिक कठिन होगा,
आईने के समक्ष खड़े होकर,
अंदर दबे झूठ व नफरतों के बारे सोचना,
फिर भी प्रयत्न करके एक दिन,
मन की गाँठें खोलते हैं,
चलो स्वयं से सत्य बोलते हैं।।
आईने के समक्ष खड़े होकर,
अंदर दबे झूठ व नफरतों के बारे सोचना,
फिर भी प्रयत्न करके एक दिन,
मन की गाँठें खोलते हैं,
चलो स्वयं से सत्य बोलते हैं।।
अपनी जात, धर्म या प्रदेश भूल,
मन में दबे सभी पूर्वाग्रहों को छोड़,
एकाग्र मन से,
अपने हृदय पर हाथ धरकर,
एक दिन न्यायोचित बोलते हैं।
चलो स्वयं से सत्य बोलते हैं।।
मन में दबे सभी पूर्वाग्रहों को छोड़,
एकाग्र मन से,
अपने हृदय पर हाथ धरकर,
एक दिन न्यायोचित बोलते हैं।
चलो स्वयं से सत्य बोलते हैं।।
©स्वर्ण दीप बोगल