कभी इक दूजे से आगे,
निकल भागने की होड़ है जिंदगी।
तो कभी हार-जीत की सोचे बिना,
बस गतिमान रहने की दौड़ है जिंदगी।
कभी साज-सज्जा व ऐशोआराम,
कभी ग़ुरबत व गरीबी का दौर भी ज़िन्दगी।
किसी दूजे के वास्ते भी कुछ कर लेना चाहिए,
चाहे कितनी भी दौड़ है जिंदगी।
जैसे भी मिले ज़िंदादिली से जी जाए,
बस दो साँसों की तो डोर है जिंदगी।
निकल भागने की होड़ है जिंदगी।
तो कभी हार-जीत की सोचे बिना,
बस गतिमान रहने की दौड़ है जिंदगी।
कभी साज-सज्जा व ऐशोआराम,
कभी ग़ुरबत व गरीबी का दौर भी ज़िन्दगी।
किसी दूजे के वास्ते भी कुछ कर लेना चाहिए,
चाहे कितनी भी दौड़ है जिंदगी।
जैसे भी मिले ज़िंदादिली से जी जाए,
बस दो साँसों की तो डोर है जिंदगी।
- स्वर्ण दीप बोगल
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