न तो कभी घूँघट से मिलता है,
न कभी किसी पर्दे से,
न किसी चरण स्पर्श से मिलता है,
न किसी खोखले दुआ, सलाम,
या किसी अन्य अभिवादन भर से,
ये इज़्ज़त, आदर या सच्चा सम्मान,
किसी सम्बोधन या आडम्बर का मोहताज नहीं,
ये तो बस हृदय का कोमल अहसास है,
जो हमारे सम्पूर्ण जीवन के प्रयासों
व आचरण से प्रभावित होकर,
स्वत: ही अन्तर्मन से निकलता है।
न कभी किसी पर्दे से,
न किसी चरण स्पर्श से मिलता है,
न किसी खोखले दुआ, सलाम,
या किसी अन्य अभिवादन भर से,
ये इज़्ज़त, आदर या सच्चा सम्मान,
किसी सम्बोधन या आडम्बर का मोहताज नहीं,
ये तो बस हृदय का कोमल अहसास है,
जो हमारे सम्पूर्ण जीवन के प्रयासों
व आचरण से प्रभावित होकर,
स्वत: ही अन्तर्मन से निकलता है।
© स्वर्ण दीप बोगल
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