Saturday 30 December 2017

सपने देखने की हैसियत

सपने देखने की हैसियत

जानता हूँ कि सपने देखने की
व शौक पालने की हैसियत नहीं होती,
दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में व्यस्त,
किसी गरीब मेहनतकश के पास,
चाहे अपनी किसी रुचि या शौक के बारे,
कितने ही निबंध लिखे हों बचपन में।
किसी मंज़िल को पाने के लड़कपन में,
कितने ही सपने देखे हों उसने।
फिर भी ज़िन्दगी की जद्दोजहद के बावजूद,
अगर सपने देखे ही न जाते, तो
दासप्रथा की बर्बरता व अमानवीय अत्याचार से, 
क्या कभी निकल पाते हम?
किसी सामन्त के शाही फरमान के बोझ से,
क्या कभी निकल पाते हम?
कारखानों में दिन-रात अपनी जान गवांते मज़दूर,
क्या कभी खूनी संघर्ष के उपरांत
काम के 8 घण्टे तय करवा पाते?
एक नागरिक के तौर पर जो अधिकार,
लोकतंत्र ने हमें प्रदान किये हैं,
वो सब क्या हमें मिल पाते?

- बोगल सृजन

Wednesday 27 December 2017

दिल की आवाज़

दिल की आवाज़

चहुँ ओर फैले बेतहाशा शोर में भी,
जब बड़ी एकाग्रता के साथ
मैं अपने दिल की सुन रहा हूँ,
तो कोई अंतर नहीं अगर कोई कहे,
कि मैं बस किस्से-कहानियाँ बुन रहा हूँ।

जब इंसानियत बिक रही है कौड़ियों के भाव,
जब रिश्तों से अधिक मोल पैसों का है,
जब हर रिश्ते की बुनियाद मतलब है, 
तो क्या बुरा है अपने ज़मीर की सुन कर,
मैं अगर किस्से-कहानियां ही बुन रहा हूँ।

माना धन संचित करने में ज़रा कच्चा हूँ,
झूठ, छल व फरेब समझने में खाता गच्चा हूँ,
फिर भी वंचितों के दुख, दर्द व पीड़ा समझ अगर मैं,
लिखने को प्रयासरत हूँ तो बुरा नहीं गर कोई ये कहे, 
कि मैं बस किस्से-कहानियां बुन रहा हूँ।

कुछ अनोखा तो नहीं कर रहा हूँ,
अपने सामाजिक कर्तव्य पूरे न कर पाकर,
साधारण जनमानस की रोज़मर्रा की दिक़्क़तों,
उनकी चुनौतियों व उनके अधिकारों की बात कहते,
अगर मैं किस्से-कहानियां बुन रहा हूँ।।

- बोगल सृजन 

Friday 22 December 2017

सत्य व आदर्शवाद की खोखली बातें

सत्य व आदर्शवाद की खोखली बातें

क्यों पढ़ाई जाती हैं अबोध बालकों को,
सत्य व आदर्शवाद की खोखली बातें,
जब सच का मुखौटा पहने झूठ द्वारा,
सच्चाई को सर्रेआम बीच चौराहे,
हर रोज़ नीलाम किया जाता है।

क्यों पढ़ाई जाती हैं अबोध बालकों को,
सत्य व आदर्शवाद की खोखली बातें,
जब सड़क से लेकर सत्ता के गलियारों तक,
जीवन के हर इक कारोबार में,
झूठ, फरेब व धोखा ही नज़र आता है।

क्यों पढ़ाई जाती हैं अबोध बालकों को,
सत्य व आदर्शवाद की खोखली बातें,
जब सत्यनिष्ठा से कर्म करने वालों को,
अपनी सत्यता व निष्ठा साबित करते,
पूरा-पूरा जीवन बीत जाता है।

क्यों पढ़ाई जाती हैं अबोध बालकों को,
सत्य व आदर्शवाद की खोखली बातें,
जब सत्यनिष्ठों का जीवन कष्ट भरा,
व झूठे फरेबियों का जीवन सदा
आरामदायक व आनन्दमय नज़र आता है।

अब तो ये सोचता हूँ की क्यों नहीं पढ़ाई जाती, 
अबोध बालकों को झूठ व फरेब की सच्चाई,
कि झूठ, फरेब व धोखाधड़ी की भी करें वो पढ़ाई,
क्योंकि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाने को,
आखिर यही सब तो आज काम आता है।।

- बोगल सृजन

Friday 15 December 2017

क्या ख़ाक जी रहे हैं।

क्या ख़ाक जी रहे हैं।

जीवन की भाग-दौड़ के चक्कर में,
छोटे-छोटे खुशी के पलों को,
छोड़कर आने वाले कल के भरोसे,
जी रहे हैं जीवन अगर,
तो क्या हम ख़ाक जी रहे हैं।

इन छोटे-छोटे खुशियों के पलों को,
जीकर अपने जीवन की डायरी में,
सहेज कर न रख पाए अगर,
अपने बुढ़ापे में याद करने के लिये,
तो क्या हम ख़ाक जी रहे हैं।

माना व्यस्तता है जीवन में,
जिम्मेदारियों के बोझ से,
मगर अच्छे कल की उम्मीद में,
हम आज को इक सज़ा सा जियें,
तो क्या हम ख़ाक जी रहे हैं।

मैं ये तो नहीं कहता कि
भविष्य की योजनाएं बनाना गलत है,
मगर अनिश्चित कल के लिए,
अपना आज कुर्बान करके जियें अगर,
तो क्या हम ख़ाक जी रहे हैं।।

#बोगल सृजन

Sunday 10 December 2017

सफर जीवन का

सफर जीवन का

ये सफर ज़िन्दगी का,
माना मुश्किल तो है,
मगर चुनौतियों से भयभीत होकर,
सफर कोई भी बीच मझधार छोड़ना,
फिर भी बात बेहतर तो नहीं है।

ये भी मान लिया,
कि जीवन के सफर में सदा,
फूलों से सजी राहें तो न होंगी,
मगर हमसफ़र अच्छा हो अगर,
सफर कोई भी मुश्किल तो नहीं है।

कभी मंज़िल पाने को अथक प्रयास,
कभी उम्मीद टूट जाने पर लगे आघात,
नन्हीं सी खुशी पर जश्न कभी है,
ये उतार-चढ़ाव ही न हों अगर जीवन में,
तो भी इस सफर में कोई मज़ा नहीं है।

हाँ, ये भी माना कि 
समझौता करना पड़ता है कभी।
क्योंकि बुलन्दियाँ पाने के लिये,
कष्ट उठाना भी पड़ जाए जीवन में अगर,
तो शायद कोई बुरी बात नहीं है।।

Friday 8 December 2017

क्या हमने अपना फर्ज़ निभाया?

क्या हमने अपना फर्ज़ निभाया?

एक प्रश्न बड़ा ही गम्भीर सा,
सहसा ही मेरे मन में उमड़ आया,
कि सात दशकों की आज़ादी के उपरांत,
इस महान लोकतंत्र से हमने क्या पाया।
इस प्रश्न को जब मैंने बार-बार दोहराया,
हाशिये पर जी रही बहुसंख्यक आबादी व
भूख से बिलखते बच्चों की फौज का प्रश्न उठाया,
तो उत्तर हर तरफ से नदारद आया।।

जब मैंने इस प्रश्न को बार-बार दोहराया,
तो कहीं से जवाब ये भी आया कि 
हमने इस देश के महान लोकतंत्र से,
वोट करके प्रतिनिधि चुनने का अधिकार पाया।
पर जब इस उत्तर पर थोड़ा ध्यान लगाया,
तो पाया कि वर्षों से जिन्हें चुनते रहे वोट देकर,
कभी ज़ात के नामपर तो कभी धर्म के नामपर,
उन्होंने हमें सदा लड़ाया और खुद माल कमाया।।

हर बार सरकारों ने हमारा मज़ाक बनाया,
कभी हमारी गरीबी, कभी बेरोजगारी,
तो कभी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर,
सत्ता को हथियाने का बस रास्ता बनाया।
फिर पाँच वर्ष बाद कोई नया दल आया,
उसने भी हमें सुनहरे कल का ख्वाब दिखाया,
वोट दे हमने भी अपना फर्ज निभाया,
पर देश के हालात में अंतर कोई नज़र न आया।।

माना समय-समय की सरकारों ने 
किया जनता को गुमराह और फायदा उठाया।
मगर बस 5 वर्ष बाद वोट देकर ही,
इस लोकतंत्र के लिए हमारा फर्ज़ पूरा हो पाया?
अब प्रश्न है कि देश की एकता-अखंडता के लिए,
भ्रष्टाचार का जड़ से अंत करने के लिए,
जात-पात व ऊँच-नीच सी कुरीतियों के अंत के लिए,
हम सब ने कितना ही जिम्मा उठाया।।

अपने ही काम का ठीकरा दूसरे पर 
फोड़ने की आदत ने हमें इतना उलझाया 
कि हमने लोकतंत्र को बनाने व बचाये रखने की,
सब जिम्मेदारियों को बस राजनेताओं को थमाया।
माना कुरीतियाँ हावी हैं जनमानस पर, 
और भ्रष्टाचार रच-बस गया है हमारे समाज में,
मगर पा लेंगे मंज़िल स्वच्छ समाज की हम सब
मिलजुल कर संघर्ष करने का जो हमने बीड़ा उठाया।।

#बोगल सृजन

Saturday 2 December 2017

हौसले_को_नमन

हौसले_को_नमन

न समझो इन्हें पात्र दया के,

न अलग तरह के इंसान,
माना कि दिव्यांग हैं ये,
पर चाहें ये सबकी तरह,
समान अधिकार व सम्मान।

तो क्या है गर वंचित हैं,

काया के किसी अंश से,
फिर भी हार न मानकर, 
दृढ़ संकल्प व इच्छाशक्ति से,
सँघर्षरत रहें जीवनपर्यंत ये।

अधूरे होकर भी पूरे हैं,

मजबूत इरादों की सान पर तेज़ हुए जो,
हिम्मत व हौसले के हथियार से,
नमन करूँ मैं शत-शत इनको,
लड़ जीवन से जो कभी न हारते।।

#बोगल_सृजन