सपने देखने की हैसियत
जानता हूँ कि सपने देखने की
व शौक पालने की हैसियत नहीं होती,
दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में व्यस्त,
किसी गरीब मेहनतकश के पास,
चाहे अपनी किसी रुचि या शौक के बारे,
कितने ही निबंध लिखे हों बचपन में।
किसी मंज़िल को पाने के लड़कपन में,
कितने ही सपने देखे हों उसने।
फिर भी ज़िन्दगी की जद्दोजहद के बावजूद,
अगर सपने देखे ही न जाते, तो
दासप्रथा की बर्बरता व अमानवीय अत्याचार से,
क्या कभी निकल पाते हम?
किसी सामन्त के शाही फरमान के बोझ से,
क्या कभी निकल पाते हम?
कारखानों में दिन-रात अपनी जान गवांते मज़दूर,
क्या कभी खूनी संघर्ष के उपरांत
काम के 8 घण्टे तय करवा पाते?
एक नागरिक के तौर पर जो अधिकार,
लोकतंत्र ने हमें प्रदान किये हैं,
वो सब क्या हमें मिल पाते?
- बोगल सृजन
जानता हूँ कि सपने देखने की
व शौक पालने की हैसियत नहीं होती,
दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में व्यस्त,
किसी गरीब मेहनतकश के पास,
चाहे अपनी किसी रुचि या शौक के बारे,
कितने ही निबंध लिखे हों बचपन में।
किसी मंज़िल को पाने के लड़कपन में,
कितने ही सपने देखे हों उसने।
फिर भी ज़िन्दगी की जद्दोजहद के बावजूद,
अगर सपने देखे ही न जाते, तो
दासप्रथा की बर्बरता व अमानवीय अत्याचार से,
क्या कभी निकल पाते हम?
किसी सामन्त के शाही फरमान के बोझ से,
क्या कभी निकल पाते हम?
कारखानों में दिन-रात अपनी जान गवांते मज़दूर,
क्या कभी खूनी संघर्ष के उपरांत
काम के 8 घण्टे तय करवा पाते?
एक नागरिक के तौर पर जो अधिकार,
लोकतंत्र ने हमें प्रदान किये हैं,
वो सब क्या हमें मिल पाते?
- बोगल सृजन
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