Friday 8 December 2017

क्या हमने अपना फर्ज़ निभाया?

क्या हमने अपना फर्ज़ निभाया?

एक प्रश्न बड़ा ही गम्भीर सा,
सहसा ही मेरे मन में उमड़ आया,
कि सात दशकों की आज़ादी के उपरांत,
इस महान लोकतंत्र से हमने क्या पाया।
इस प्रश्न को जब मैंने बार-बार दोहराया,
हाशिये पर जी रही बहुसंख्यक आबादी व
भूख से बिलखते बच्चों की फौज का प्रश्न उठाया,
तो उत्तर हर तरफ से नदारद आया।।

जब मैंने इस प्रश्न को बार-बार दोहराया,
तो कहीं से जवाब ये भी आया कि 
हमने इस देश के महान लोकतंत्र से,
वोट करके प्रतिनिधि चुनने का अधिकार पाया।
पर जब इस उत्तर पर थोड़ा ध्यान लगाया,
तो पाया कि वर्षों से जिन्हें चुनते रहे वोट देकर,
कभी ज़ात के नामपर तो कभी धर्म के नामपर,
उन्होंने हमें सदा लड़ाया और खुद माल कमाया।।

हर बार सरकारों ने हमारा मज़ाक बनाया,
कभी हमारी गरीबी, कभी बेरोजगारी,
तो कभी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर,
सत्ता को हथियाने का बस रास्ता बनाया।
फिर पाँच वर्ष बाद कोई नया दल आया,
उसने भी हमें सुनहरे कल का ख्वाब दिखाया,
वोट दे हमने भी अपना फर्ज निभाया,
पर देश के हालात में अंतर कोई नज़र न आया।।

माना समय-समय की सरकारों ने 
किया जनता को गुमराह और फायदा उठाया।
मगर बस 5 वर्ष बाद वोट देकर ही,
इस लोकतंत्र के लिए हमारा फर्ज़ पूरा हो पाया?
अब प्रश्न है कि देश की एकता-अखंडता के लिए,
भ्रष्टाचार का जड़ से अंत करने के लिए,
जात-पात व ऊँच-नीच सी कुरीतियों के अंत के लिए,
हम सब ने कितना ही जिम्मा उठाया।।

अपने ही काम का ठीकरा दूसरे पर 
फोड़ने की आदत ने हमें इतना उलझाया 
कि हमने लोकतंत्र को बनाने व बचाये रखने की,
सब जिम्मेदारियों को बस राजनेताओं को थमाया।
माना कुरीतियाँ हावी हैं जनमानस पर, 
और भ्रष्टाचार रच-बस गया है हमारे समाज में,
मगर पा लेंगे मंज़िल स्वच्छ समाज की हम सब
मिलजुल कर संघर्ष करने का जो हमने बीड़ा उठाया।।

#बोगल सृजन

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