कभी राह में भूख को तरसते,
किसी बेसहारा बच्चे की पीड़ा,
कभी मेहनताने की आस में,
धूप में पसीना बहाता कोई मज़दूर,
तो कभी अच्छी फसल की उम्मीद लगाए,
हाड़तोड़ परिश्रम करता किसान,
प्रभावित कर सकते हैं किसी कवि को,
इन सब का दर्द बयां करने में,
कविताओं के माध्यम से ।
किसी बेसहारा बच्चे की पीड़ा,
कभी मेहनताने की आस में,
धूप में पसीना बहाता कोई मज़दूर,
तो कभी अच्छी फसल की उम्मीद लगाए,
हाड़तोड़ परिश्रम करता किसान,
प्रभावित कर सकते हैं किसी कवि को,
इन सब का दर्द बयां करने में,
कविताओं के माध्यम से ।
और ये कवितायें ज़िंदा रहती हैं,
तब भी जब उनके कवि को,
भूख से बिलखते बेसहारा बच्चों की
पीड़ा दिखाई नहीं पड़ती।
तब भी जब उनके कवि को,
भूख से बिलखते बेसहारा बच्चों की
पीड़ा दिखाई नहीं पड़ती।
ये कवितायें ज़िंदा रहती हैं,
तब भी जब उनके कवि को,
किसी मज़दूर की हाड़तोड़ मेहनत से
कोई अंतर महसूस नहीं होता।
तब भी जब उनके कवि को,
किसी मज़दूर की हाड़तोड़ मेहनत से
कोई अंतर महसूस नहीं होता।
ये कवितायें ज़िंदा रहती हैं,
तब भी जब उनके कवि को,
महीनों के परिश्रम के बाद
अच्छी फसल न होने पर दम तोड़ते,
किसान का दर्द महसूस नहीं होता।
तब भी जब उनके कवि को,
महीनों के परिश्रम के बाद
अच्छी फसल न होने पर दम तोड़ते,
किसान का दर्द महसूस नहीं होता।
©स्वर्ण दीप बोगल
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