Sunday 17 June 2018

कविता - घोड़े गधे सब एक हुए।


प्रतिभा का अब खेल नहीं,
जोड़-तोड़ सरेआम हुए,
परिश्रम, निष्ठा का मोल नहीं अब,
क्यों कोई लगन से काम करे,
चाटुकारों का डंका बजता,
वो करें खुशामद, आराम करें,
सरकारी तन्त्र की क्या बात करें,
निजी क्षेत्र के बुरे हाल हुए,
निष्ठावानों को कौन पूछता,
जब घोड़े गधे सब एक हुए।

©स्वर्ण दीप बोगल

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