Saturday 2 September 2017

गुरु व भक्त का नाता

गुरु व भक्त का नाता

भक्त और भगवान का,
तो नाता ही बड़ा कमाल है,
जहाँ भक्त चरण रज और
प्रभु जी का स्वरूप विकराल है।

जब भक्त इतना तुच्छ
और भगवान इतने विशाल हैं,
तो प्रश्न करना अपने प्रभु रूपी बाबा से,
भक्त के लिए जैसे महापाप है।

क्योंकि भक्त अपने गुरु या बाबा की तुलना में,
खुद को बेहद सूक्ष्म व निरर्थक पाता है,
तभी तो उसे अपनी कुंद्ध सोच पे,
प्रभु विरुद्ध सोचने पर ताला नज़र आता है।

उसको अपने गुरु द्वारा किये गये,
बस सामाजिक कार्य ही नज़र आते हैं,
बंद दरवाजों में किये गए कुकृत्य,
तो उससे वैसे भी छुपाये जाते हैं।

तो प्रश्न उस भावुक भक्त से,
हम भी भला क्या करें,
जो अनजान गुरु के चरित्र से
बस भक्ति व प्रेम करे।

पर इक प्रश्न बड़ा गम्भीर सा है,
जो सभी के मन टटोलता है,
कि क्यों साधारण जनमानस फंस रहा है,
इन बाबाओं के ढेरों में??

- स्वर्ण दीप बोगल
To be continued......

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