Sunday 17 September 2017

डर का कारोबार

डर का कारोबार

जो घुट्टी में ही था हमें पिलाया गया,
नन्ही सोच को बस उलझाकर,
कभी न फिर जो सुलझाया गया,
कब तक ये बचकाना खेल चलेगा,
कब तक ये डर का कारोबार चलेगा?

अबोध बचपन से ही अंधेरे में जाने पर,
न था हमें अच्छी तरह समझाया गया,
बस भूतों का नाम लेकर डराया गया,
झूठ कबतक ये सब बारम्बार चलेगा,
कब तक ये डर का कारोबार चलेगा?

विद्यालय में भी यही पैंतरा अपनाया गया,
शिक्षा व ज्ञान का महत्व न समझाकर
कभी डंडे का तो कभी कोई और डर दिखाया गया,
न जाने कब ये निज़ाम बदलेगा,
कब तक ये डर का कारोबार चलेगा?

सच्चाई, ईमानदारी व दया आदि
मानवीय भावनाओं को बचाये रखने के लिये,
क्यों ईश्वर या खुदा से हमें डराया गया,
बिना किसी डर कभी इंसान, इंसान बनेगा,
फिर जाने कब तक ये डर का कारोबार चलेगा?

बोगल सृजन

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