Wednesday 20 September 2017

भूखे नंगों के अधिकार

भूखे नंगों के अधिकार

मेरे किसी प्रियजन ने 
एक रोज़ मुझसे पूछा जो,
कि जीवन में सब कुछ है
जब सुख सुविधाओं के लिए,
और अच्छा भला कमा लेते हो,
तो फिर ये क्या पागलपन है 
जो सदा भूखे नंगों के, दलितों के,
गरीबों, किसानों के, व हर दबे-कुचले के,
अधिकारों की बात करते हो।।

समझाने के लहजे से मुझे फिर बोला वो,
कि माना समाज सेवा का पाठ, जो 
पढाया था गुरुजी ने कक्षा में कभी,
वो अभी तक तुम नहीं भूले हो,
फिर भी अगर तुम बस
किसी अभागे को भोजन करा दो,
किसी बच्चे को पुस्तकें खरीदकर दो,
या किसी संस्था को दान ही दे दो
शायद उसी से तुम्हें आत्मसन्तुष्टि जाए हो।।

बहुत देर टालने के बाद भी जब उसने 
मेरा उत्तर जानने की उत्सुकता दिखाई,
फिर मैंने भी उसको ये बात बताई,
कि माना भूख मिट जाएगी एक भूखे की,
अगर मैने रोटी उसको खिलाई।
और पढ़ पायेगा कोई एक,
अगर किसी बच्चे को किताबें दिलाई।
मगर हर भूखे की भूख मिट पाए व
हर ज़रूरतमन्द बच्चे को किताबें मिल पायें,
इसीलिए उनके अधिकारों की बात थी उठायी।।

वैसे भी सीमित संसाधन हैं मेरे,
और कोई टाटा-बिड़ला भी मैं हूँ नहीं,
अपने घरेलू कर्तव्यों को निभाने के बाद,
सब की ज़रूरत अपने थोड़े से समय व धन से
मैं अकेले तो पूरी कर सकता नहीं।
इसीलिए तो हर गरीब को, हर किसान को,
हालात व समाज से शोषित हर तबके को,
भूख से बिलखते हर बच्चे को,
अपना हर जायज़ हक मिल पाए,
ये आवाज़ गर मैने उठाई तो कुछ गलत तो नहीं।।

#बोगल_सृजन

1 comment:

  1. Thats wat humanity is ...those who think abt others are real humans ..

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