Saturday 30 September 2017

बच्चे और बचपन

बच्चे और बचपन

क्या होते हैं बच्चे,
गीली मिट्टी के जैसे, 
कोई भी आकार लेने को तैयार,
सच-झूठ के फरेब से दूर,
कोमल हृदय लिए भोले-भाले मासूम बच्चे।

क्या-क्या करते हैं ये बच्चे,
कभी कोई अनहोनी ज़िद मनवाते,
कभी अपने प्रिय कार्टून के,
या टीवी के किसी किरदार के 
भारी-भरकम डॉयलाग दोहराते ये बच्चे।

हम तो चाहते हैं कि हूबहू 
हमारे कहने पर चलें ये बच्चे,
उनकी टीवी की शब्दावली से भर्मित,
हमें लगता है शायद बड़े हो गए हैं वो,
मगर हैं तो वह अभी भी मासूम व अबोध बच्चे।

शायद इतने बड़े हो गए हैं हम,
अपनी ज़िंदगी की भाग-दौड़ में कि,
अपने बचपन की नादानियां भूलकर,
अनजाने में इनका सुंदर बचपन छीनकर,
नहीं रहने दे रहे हैं इनको बच्चे

माना उम्मीदें बहुत हैं हमें उनसे,
हाँ होनी भी चाहिए,
मगर अपना बचपन जीकर,
उन उम्मीदों का बोझ उठाने के लिए,
पहले तैयार तो हो जाएं ये बच्चे

बचपन है तो बचपना भी होगा,
कैसे हो जाएं आप और हम जैसे ये बच्चे,
मुश्किल तो है फिर भी,
अगर जी पायें कुछ बचपना इनके सँग फिर से,
शायद सोच पायें क्या होते हैं बच्चे???

- बोगल_सृजन

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