Sunday 24 September 2017

नई सुबह की उम्मीद

नई सुबह की उम्मीद

भय, बुराई व अज्ञानता की प्रतीक,
अमावस की रात के घने अँधेरे के उपरान्त,
स्वर्ण सी दमकती सूर्य की किरणों संग,
नूतन एवं स्वच्छ परिवेश में नयी उम्मीदें लेकर,
फूट पड़ती है जैसे भोर की नवीन लालिमा,

वैसे ही रोम-रोम में घृणा की विकृत मानसिकता,
जो छाई है काया के किसी अभिन्न अंग सी,
ऐसे हर भाव को मन मस्तिष्क से निकाल फेंक,
हृदयों में प्रेम व कोमल भावों का संचार कर दे,
जीवन की किसी सुबह में कभी आएगी ऐसी नवीन लालिमा?

ये कैसी कठोरता की भूख के लिए क्रंदन करती,
अबलाओं व मासूमों के रुदन से कहीं अधिक,
हमें उनके प्रति धार्मिक द्वेष नज़र आता है।
किसी बुरे स्वपन की भाँति  ये सब भुला,
प्रेम व भाईचारे की देख पाएंगे हम नयी सुबह??

#बोगल_सृजन 

No comments:

Post a Comment