Sunday 15 July 2018

विरासत


"क्या हुआ, किसका फोन था," अपने ही डेस्क से मैंने हड़बड़ाहट में बात करते अनिल से पुछा।

मेरी बात को अनसुना करते हुए वो फ़ौरन मैनेजर के कमरे की ओर दौड़ा और मैं भी उसके पीछे-पीछे।

अनिल पंजाब के एक गाँव का रहने वाला है जो पिछले दो वर्षों से मेरे साथ दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है। मेहनती व् ईमानदार होने के साथ ही वह एक अच्छा इंसान भी है और उसके ज़िंदादिल व् एक-दूसरे की परवाह करने के स्वभाव के चलते वो मेरा एक अच्छा मित्र भी बन गया था। हाँ, उसकी एक एक बात मुझे पसंद नहीं थी कि वो कंजूस बहुत था।

अपने गाँव के खेतों में बीते उसके बचपन की बातें वो अक्सर सुनाया करता। वो बताता था कि उसके पिताजी ने दिन-रात खून-पसीना एक करके उसे पढाया। वो ये भी बताता था कि कैसे स्कूल के बाद सभी भाई-बहन मिलकर खेती के कामों में अपने पिता का हाथ बंटाया करते थे।

उड़ा सा चेहरा लिए मैनेजर के कमरे से निकलते अनिल से मैंने फिर पूछा, हुआ क्या है भाई?
"पिता जी नहीं रहे", इतना कहकर मेरे गले लगकर वो फूट-फूटकर रोने लगा।

अनिल को गाड़ी में बिठाकर मैं वापिस ऑफिस लौट आया ये याद करते-करते कि अनिल को अपने पिता जी से बहुत लगाव था। अक्सर छुट्टी के दिन जब अनिल कभी मेरे घर आता तो सदा अपने पिताजी व बड़े-बड़े खेत-खलिहानों की ही बातें सुनाता।  उसने बताया था कि जब वो बहुत छोटा था कैसे उसके पिताजी उसे कंधे पर बिठाकर खेतों की सैर कराते थे।

बहरहाल, 12-15 दिनों पश्चात अनिल वापिस दफ्तर आ गया। निजी क्षेत्र की नौकरी में ज़्यादा दिनों की छुट्टी का अर्थ तो हम सब जानते हैं।

पिताजी के देहांत के बाद अनिल कुछ चुपचाप व कटा-कटा सा रहने लगा था। उसके ऐसे व्यवहार से मेरे दिमाग में कई प्रकार के प्रश्न उठ रहे थे। मगर हम आज के मतलबी व लालची लोगों का दिमाग फायदे और नुकसान से आगे कुछ सोच ही नहीं सकता। मेरे दिमाग में चल रहा था कि अनिल तो अब अपने पिताजी के बड़े-बड़े खेत-खलिहानों का मालिक हो गया है शायद तभी वह कुछ बदल से गया हो क्योंकि मैंने अक्सर लोगों को विरासत में ज़मीन-जायदाद मिलने के बाद बदलते देखा है।

सो, मैंने भी उत्सुकतावश एक दिन अनिल से पूछ ही लिया कि तुम्हे पिताजी से विरासत में क्या-क्या मिला है?

कुछ देर तक चुप रहने के बाद अनिल ने बताया कि
मेरी पढ़ाई, बहन की शादी व माँ की बीमारी में एक-एक करके सब खेत बिक गए थे मगर पिता जी ने मुझे कभी पता नहीं चलने दिया ताकि मेरी पढ़ाई में कभी बाधा न पड़े। आधा पेट खाना खाकर दिन-रात खेतों में मज़दूरी करके वो कमजोर होते चले गए जिसके चलते उनका कमजोर शरीर ज़िन्दगी की जद्दोजहद में मौत के आगे हार गया।

हाँ, विरासत में मुझे पिताजी का कर्ज मिला है जिसे मैं जी जान से चुकाऊंगा व मेरे पिताजी के खेतों को वापिस लाऊँगा।
काश! उनके जीते जी मुझे ये विरासत मिली होती तो शायद आज वो हमारे बीच ज़िंदा होते। हाँ, एक और बात, मैं जानता हूँ कि मेरी कंजूसी तुम्हें अच्छी नहीं लगती मगर मैं छोटे भाई की पढ़ाई के लिए पैसे बचा कर रखता हूँ।
बात खत्म होने के बाद अनिल उठकर चला गया और मैं  वहीं जड़ हो गया था और उसकी बातें मुझे अंदर तक चीरती जा रही थी और मैं शर्म के मारे पानी-पानी हुआ जा रहा था।

लूट लिया

हमको जब लूट लिया
प्यार भरे दो मीठे बोलों ने ही।
हमारी पीठ में फिर
खंजर क्यों उतार दिया ?

जब हम तैयार थे
कि तुझपर जान वार दें।
तुम क्यों सोच लिया कि
मैंने पुराना कर्ज़ उतार लिया।

मुझे क्या पता था

मुझे क्या पता था
कि बेपनाह उम्मीदों से भरा,
छोटी सी पगडंडी से शुरू,
ज़िन्दगी का सफर,
ताउम्र मेहनत के बाद भी,
नाउम्मीदी के सिवा कुछ नहीं देगा।

मुझे क्या पता था
कि हिम्मत व मेहनत के दम पर,
किस्मत बदल डालने का सफर,
जो शुरू किया था हमने,
भ्र्ष्टाचार के इस दौर में,
जाने किस मोड़पर जाकर स्थिर हो गया।।
एक सवाल

एक सवाल है,
आज स्वयं से ही,
कि हम क्या किये जा रहे हैं?
रोज़मर्रा के जीवन की
छोटी-छोटी खुशियां छोड़कर,
बस दिन-रात पैसे के पीछे,
हम क्यों जिये जा रहे हैं?

एक सवाल है,
आज स्वयं से ही,
कि हम क्या किये जा रहे हैं?
छोटी-छोटी ज़रूरतों के बड़ा बनाकर,
घर-परिवार, मित्रों-रिश्तेदारों से दूर,
जाने कौन सी खुशियों की तलाश में,
क्यों दिन रात पिसे जा रहे हैं?
चलो परिंदों से सीखें हम,
कुछ नया तो कुछ पुराना।
अपने छोटे-छोटे पंखों से,
उन्मुक्त गगन की ऊंचाइयों में तैरना,
न भरना दम्भ कोई,
आकर फिर गले धरती को लगाना।
एक-एक दाना चुनना बच्चों के लिए,
कल का कोई न ठिकाना।
तिनका-तिनका जोड़ बड़ी लगन से,
अपना घरोंदा बनाना।
टूट जाए गर एक डाली से तो
फिर शिद्दत से दूजी पे जा लगाना।
न बँधे रहना किसी सरहद में,
न किसी मजहब में बंध जाना।
कभी किसी मंदिर के शिखर पे,
तो कभी मस्जिद की मीनार पे चढ़ जाना।
चलो परिंदों से ही सीखें हम,
अब इंसान हो जाना।।

Friday 6 July 2018

पास जाकर देखिए

सुनी-सुनाई बातों का अनुसरण कर,
हीन भावनायुक्त छवि बना,
किसी व्यक्ति विशेष से,
दूरी बनाकर रखने से बेहतर है,
उसके पास जा कर देखिए,
कुछ अपने दिल की कहिये,
कुछ उसके दिल की सुनिए,
लोगों की कही बातों को अनसुना कर,
एक रास्ता दिल का चुनिए।

एक_शुरूआत


सदियों से स्थापित,
पितृसत्तात्मक सोच से प्रभावित,
अपनी बहन, बीवी या बेटी को,
हम अक्सर समझाते आये हैं,
ढंग के कपड़े पहने की,
सलीके से चलने की,
व देर रात बाहर न जाने जैसी,
कई नसीहतें सुनाते आये हैं।

मगर अब तो,
हालात बद से बद्तर हो चले हैं,
महिलाओं की इज़्ज़त से खेलने वाले,
हर गली नुक्कड़ पे मिलने लगे हैं।
औरत को वस्तु समझने वालों की
पहले भी कमी न थी,
मगर अब तो बूढ़ी औरतों और
दुधमुंही बच्चियों को भी दरिंदे नोचने लगे हैं।।

चलो मोमबत्तियां न जलाकर इस बार,
एक नई शुरूआत करते हैं।
अपनी बहन बेटियों को छोड़,
अपने बेटों से बात करते हैं।
अपनी बहनों से व्यवहार जो चाहते समाज से,
हर लड़की को देने की बात करते हैं।
राह चलती औरतों को समझे इंसान वे,
बस यही एक कोशिश दिल से आज करते हैं।।

©स्वर्ण दीप बोगल