"क्या हुआ, किसका फोन था," अपने ही डेस्क से मैंने हड़बड़ाहट में बात करते अनिल से पुछा।
मेरी बात को अनसुना करते हुए वो फ़ौरन मैनेजर के कमरे की ओर दौड़ा और मैं भी उसके पीछे-पीछे।
अनिल पंजाब के एक गाँव का रहने वाला है जो पिछले दो वर्षों से मेरे साथ दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है। मेहनती व् ईमानदार होने के साथ ही वह एक अच्छा इंसान भी है और उसके ज़िंदादिल व् एक-दूसरे की परवाह करने के स्वभाव के चलते वो मेरा एक अच्छा मित्र भी बन गया था। हाँ, उसकी एक एक बात मुझे पसंद नहीं थी कि वो कंजूस बहुत था।
अपने गाँव के खेतों में बीते उसके बचपन की बातें वो अक्सर सुनाया करता। वो बताता था कि उसके पिताजी ने दिन-रात खून-पसीना एक करके उसे पढाया। वो ये भी बताता था कि कैसे स्कूल के बाद सभी भाई-बहन मिलकर खेती के कामों में अपने पिता का हाथ बंटाया करते थे।
उड़ा सा चेहरा लिए मैनेजर के कमरे से निकलते अनिल से मैंने फिर पूछा, हुआ क्या है भाई?
"पिता जी नहीं रहे", इतना कहकर मेरे गले लगकर वो फूट-फूटकर रोने लगा।
अनिल को गाड़ी में बिठाकर मैं वापिस ऑफिस लौट आया ये याद करते-करते कि अनिल को अपने पिता जी से बहुत लगाव था। अक्सर छुट्टी के दिन जब अनिल कभी मेरे घर आता तो सदा अपने पिताजी व बड़े-बड़े खेत-खलिहानों की ही बातें सुनाता। उसने बताया था कि जब वो बहुत छोटा था कैसे उसके पिताजी उसे कंधे पर बिठाकर खेतों की सैर कराते थे।
बहरहाल, 12-15 दिनों पश्चात अनिल वापिस दफ्तर आ गया। निजी क्षेत्र की नौकरी में ज़्यादा दिनों की छुट्टी का अर्थ तो हम सब जानते हैं।
पिताजी के देहांत के बाद अनिल कुछ चुपचाप व कटा-कटा सा रहने लगा था। उसके ऐसे व्यवहार से मेरे दिमाग में कई प्रकार के प्रश्न उठ रहे थे। मगर हम आज के मतलबी व लालची लोगों का दिमाग फायदे और नुकसान से आगे कुछ सोच ही नहीं सकता। मेरे दिमाग में चल रहा था कि अनिल तो अब अपने पिताजी के बड़े-बड़े खेत-खलिहानों का मालिक हो गया है शायद तभी वह कुछ बदल से गया हो क्योंकि मैंने अक्सर लोगों को विरासत में ज़मीन-जायदाद मिलने के बाद बदलते देखा है।
सो, मैंने भी उत्सुकतावश एक दिन अनिल से पूछ ही लिया कि तुम्हे पिताजी से विरासत में क्या-क्या मिला है?
कुछ देर तक चुप रहने के बाद अनिल ने बताया कि
मेरी पढ़ाई, बहन की शादी व माँ की बीमारी में एक-एक करके सब खेत बिक गए थे मगर पिता जी ने मुझे कभी पता नहीं चलने दिया ताकि मेरी पढ़ाई में कभी बाधा न पड़े। आधा पेट खाना खाकर दिन-रात खेतों में मज़दूरी करके वो कमजोर होते चले गए जिसके चलते उनका कमजोर शरीर ज़िन्दगी की जद्दोजहद में मौत के आगे हार गया।
हाँ, विरासत में मुझे पिताजी का कर्ज मिला है जिसे मैं जी जान से चुकाऊंगा व मेरे पिताजी के खेतों को वापिस लाऊँगा।
काश! उनके जीते जी मुझे ये विरासत मिली होती तो शायद आज वो हमारे बीच ज़िंदा होते। हाँ, एक और बात, मैं जानता हूँ कि मेरी कंजूसी तुम्हें अच्छी नहीं लगती मगर मैं छोटे भाई की पढ़ाई के लिए पैसे बचा कर रखता हूँ।
बात खत्म होने के बाद अनिल उठकर चला गया और मैं वहीं जड़ हो गया था और उसकी बातें मुझे अंदर तक चीरती जा रही थी और मैं शर्म के मारे पानी-पानी हुआ जा रहा था।
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