Friday 6 July 2018

एक_शुरूआत


सदियों से स्थापित,
पितृसत्तात्मक सोच से प्रभावित,
अपनी बहन, बीवी या बेटी को,
हम अक्सर समझाते आये हैं,
ढंग के कपड़े पहने की,
सलीके से चलने की,
व देर रात बाहर न जाने जैसी,
कई नसीहतें सुनाते आये हैं।

मगर अब तो,
हालात बद से बद्तर हो चले हैं,
महिलाओं की इज़्ज़त से खेलने वाले,
हर गली नुक्कड़ पे मिलने लगे हैं।
औरत को वस्तु समझने वालों की
पहले भी कमी न थी,
मगर अब तो बूढ़ी औरतों और
दुधमुंही बच्चियों को भी दरिंदे नोचने लगे हैं।।

चलो मोमबत्तियां न जलाकर इस बार,
एक नई शुरूआत करते हैं।
अपनी बहन बेटियों को छोड़,
अपने बेटों से बात करते हैं।
अपनी बहनों से व्यवहार जो चाहते समाज से,
हर लड़की को देने की बात करते हैं।
राह चलती औरतों को समझे इंसान वे,
बस यही एक कोशिश दिल से आज करते हैं।।

©स्वर्ण दीप बोगल

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