Sunday, 15 July 2018

चलो परिंदों से सीखें हम,
कुछ नया तो कुछ पुराना।
अपने छोटे-छोटे पंखों से,
उन्मुक्त गगन की ऊंचाइयों में तैरना,
न भरना दम्भ कोई,
आकर फिर गले धरती को लगाना।
एक-एक दाना चुनना बच्चों के लिए,
कल का कोई न ठिकाना।
तिनका-तिनका जोड़ बड़ी लगन से,
अपना घरोंदा बनाना।
टूट जाए गर एक डाली से तो
फिर शिद्दत से दूजी पे जा लगाना।
न बँधे रहना किसी सरहद में,
न किसी मजहब में बंध जाना।
कभी किसी मंदिर के शिखर पे,
तो कभी मस्जिद की मीनार पे चढ़ जाना।
चलो परिंदों से ही सीखें हम,
अब इंसान हो जाना।।

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