Friday 6 July 2018

ख्वाब देखते जाओ


ख्वाब देखते जाओ
तब भी,
जब खुली आँखों से भी,
ख्वाब देखने की इज़ाज़त न हो।
तब भी,
जब हर तरफ पहरा हो,
तिरस्कार भरी घूरती आँखों का साया,
हर तरफ गहरा हो।।

ख्वाब देखते जाओ,
तब भी,
जब मंज़िल की तरफ
बढ़ता हर कदम कठिन हो।
तब भी,
जब स्थितियां विपरीत हों,
आगे बढ़ने को,
जब अड़चने अंतहीन हों।।

क्योंकि ख्वाब देखना,
किसी कठिन सफर की तरफ,
मंज़िल को पाने की आस में,
लिया गया पहला कदम होता है।।

क्योंकि ख्वाब देखना,
विपरीत स्थितियों में भी,
अपनी समझ व विचारों पर,
किसी चट्टान की तरह अडिग रहने की,
पहली कोशिश होता है।।

©स्वर्ण दीप बोगल

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