लघु कथा - आपको कैसा लगता है??
अनमोल करीब 7 साल का बच्चा है। उसके पिता अमित किसी सरकारी कार्यालय में कार्यरत हैं और उसकी माँ कविता किसी निजी विद्यालय में अध्यापिका हैं। अनमोल कक्षा दूसरी में पढ़ रहा है और वह बहुत बातूनी लेकिन बुद्धिमान बालक है। अपनी आयु से बड़ी व अनोखी बातें पूछना उसके लिए साधारण बात है।
अनमोल करीब 7 साल का बच्चा है। उसके पिता अमित किसी सरकारी कार्यालय में कार्यरत हैं और उसकी माँ कविता किसी निजी विद्यालय में अध्यापिका हैं। अनमोल कक्षा दूसरी में पढ़ रहा है और वह बहुत बातूनी लेकिन बुद्धिमान बालक है। अपनी आयु से बड़ी व अनोखी बातें पूछना उसके लिए साधारण बात है।
अपने माँ-बाप से भी वह अक्सर बहुत कुछ पूछता है, जैसे कि आप लोग कौन से स्कूल में पढ़ते थे, कौन से कॉलेज में पढ़ते थे, इकट्ठे पढ़ते थे या अलग-अलग पढ़ते थे। आप दोनों की शादी कब हुई और कैसे हुई। क्या आप दोनों शादी से पहले एक दूसरे को जानते थे?
अमित और कविता भी बहुत आज़ाद विचारधारा रखते हैं व जहां तक हो सके अनमोल के हर प्रश्न का उत्तर देते हैं ताकि नई-नई चीजों को जानने की व समाज को समझने-बूझने की प्रक्रिया जो एक बच्चे में स्वाभाविक रूप से होती है वो उसके अंदर विकसित हो।
आजकल अनमोल बहुत उत्सुक है क्योंकि उसकी इकलौती मौसी की शादी जो आने वाली है और छोटा होने की वजह से शादी से संबंधित हर खरीददारी में, मसलन दहेज के लिए खरीदे जा रहे इलेक्ट्रॉनिक गैज़ेटेस, फर्नीचर या सुनार आदि, वह अपने माँ-बाप के साथ ही रहता है। बड़े चाव से चीज़ों को देखना और उनके बारे में प्रश्न ऐसे कि आसपास के लोग भी सुनकर हंस पड़ें।
खरीददारी के बाद घर आकर एक दिन अनमोल ने अमित से पूछा, पापा ये मौसी जी की शादी के लिए मामूजी और नानूजी इतना सामान क्यों खरीद रहे हैं?
अमित ने कहा, बेटा ये सब सामान मौसीजी की शादी में उपहार के तौर पर दिया जाएगा।
इसपर अनमोल बोला कि इतने सारे उपहार क्यों दे रहे हैं मौसा जी को। क्या उनके घर में सामान नहीं है?
अमित ने अनमोल को समझाते हुए बताया कि ये हमारे समाज का एक पुराना रिवाज़ है जिसके तहत लड़की के माता-पिता लड़के तो शादी में उपहार या दहेज़ देते हैं।
ये सब बातें सुन नन्हा अनमोल चुप सा हो गया और कुछ सोचने लगा। कुछ देर सोचने के बाद फिर से बोला, पापा, क्या आपने भी अपनी शादी में नानूजी से दहेज़ लिया था, उनके तो सारे पैसे ही ख़त्म हो होंगे।
इसपर अमित ने अपने बेटे को जवाब दिया, नहीं बेटा दहेज़ हमारे समाज का एक पुराना मगर बुरा रिवाज़ है और इसीलिए मैंने अपनी शादी के वक्त तुम्हारे नानुजी प्राथना की थी की मुझे दहेज़ नहीं लेना जो उन्होंने स्वीकार कर लिया था।
अच्छा, अन्मोल बोला, उसके चेहरे पर कुछ शान्ति थी मगर शायद अब भी कुछ सवाल उसके नन्हे मन में उबाले मार रहे थे। कुछ देर चुप रहने के बाद वो फिर अमित से बोला, पापाजी, मौसाजी के लिए जो नानुजी इतना सामान ले रहे हैं आपको कहीं बुरा तो नहीं लग रहा ??
अनमोल के प्रश्न से अमित अवाक सा रह गया। उसे चुप कराते हुए पास बैठी कविता गुस्से से बोली, अनमोल, ये कैसी बाते कर रहे हो आप अपने पापा से। चलो उनको सॉरी बोलो।
अमित ने कविता को चुप कराते हुए बोला, कोई बात नहीं बेटा, मैं बताता हूँ मुझे दिल से कैसा लग रहा है नानू जी का तुम्हारे मौसा जी के लिए दहेज़ का सामान खरीदते हुए देखकर।
हाँ, सच में मुझे बहुत बुरा लग रहा है कि दहेज़ जैसी कुरीति के खिलाफ आज भी लोग नहीं खड़े होते जब हर साल हज़ारो बेटियां दहेज़ के कारण प्रताड़ित होती हैं क्योंकि कुछ गरीब माँ-बाप दहेज़ नहीं दे पाते।
इसके साथ इस बात की बहुत ही ज़्यादा ख़ुशी भी है की आज से 9 साल पहले भी मैं इतनी समझ रखता था कि दहेज़ एक सामाजिक बुराई है।
- बोगल सृजन
खरीददारी के बाद घर आकर एक दिन अनमोल ने अमित से पूछा, पापा ये मौसी जी की शादी के लिए मामूजी और नानूजी इतना सामान क्यों खरीद रहे हैं?
अमित ने कहा, बेटा ये सब सामान मौसीजी की शादी में उपहार के तौर पर दिया जाएगा।
इसपर अनमोल बोला कि इतने सारे उपहार क्यों दे रहे हैं मौसा जी को। क्या उनके घर में सामान नहीं है?
अमित ने अनमोल को समझाते हुए बताया कि ये हमारे समाज का एक पुराना रिवाज़ है जिसके तहत लड़की के माता-पिता लड़के तो शादी में उपहार या दहेज़ देते हैं।
ये सब बातें सुन नन्हा अनमोल चुप सा हो गया और कुछ सोचने लगा। कुछ देर सोचने के बाद फिर से बोला, पापा, क्या आपने भी अपनी शादी में नानूजी से दहेज़ लिया था, उनके तो सारे पैसे ही ख़त्म हो होंगे।
इसपर अमित ने अपने बेटे को जवाब दिया, नहीं बेटा दहेज़ हमारे समाज का एक पुराना मगर बुरा रिवाज़ है और इसीलिए मैंने अपनी शादी के वक्त तुम्हारे नानुजी प्राथना की थी की मुझे दहेज़ नहीं लेना जो उन्होंने स्वीकार कर लिया था।
अच्छा, अन्मोल बोला, उसके चेहरे पर कुछ शान्ति थी मगर शायद अब भी कुछ सवाल उसके नन्हे मन में उबाले मार रहे थे। कुछ देर चुप रहने के बाद वो फिर अमित से बोला, पापाजी, मौसाजी के लिए जो नानुजी इतना सामान ले रहे हैं आपको कहीं बुरा तो नहीं लग रहा ??
अनमोल के प्रश्न से अमित अवाक सा रह गया। उसे चुप कराते हुए पास बैठी कविता गुस्से से बोली, अनमोल, ये कैसी बाते कर रहे हो आप अपने पापा से। चलो उनको सॉरी बोलो।
अमित ने कविता को चुप कराते हुए बोला, कोई बात नहीं बेटा, मैं बताता हूँ मुझे दिल से कैसा लग रहा है नानू जी का तुम्हारे मौसा जी के लिए दहेज़ का सामान खरीदते हुए देखकर।
हाँ, सच में मुझे बहुत बुरा लग रहा है कि दहेज़ जैसी कुरीति के खिलाफ आज भी लोग नहीं खड़े होते जब हर साल हज़ारो बेटियां दहेज़ के कारण प्रताड़ित होती हैं क्योंकि कुछ गरीब माँ-बाप दहेज़ नहीं दे पाते।
इसके साथ इस बात की बहुत ही ज़्यादा ख़ुशी भी है की आज से 9 साल पहले भी मैं इतनी समझ रखता था कि दहेज़ एक सामाजिक बुराई है।
- बोगल सृजन
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