समान शिक्षा का अधिकार ??
हाँ सुना तो है हमने कि
हमारे महान लोकतंत्र का संविधान,
किसी अन्य मौलिक अधिकार जैसे ही,
जब दिखती हैं हमें सर्व शिक्षा अभियान व
शिक्षा के अधिकार जैसी सरकारी योजनाऐं,
जब निजी स्कूल की लक्ज़री बस से निकलते बच्चे
भारत के उपग्रह कार्यक्रम पर चर्चा करते दिखें
तो यह यकीन पुख्ता होने लगता है।
मगर उसी बस के सामने से फटी नज़रों से,
फटेहाल जूते व मैली वर्दी पहने और
फ़टी पुरानी किताबें लिए गुज़रते हैं जब
किसी सरकारी स्कूल के बच्चे,
तो अभी-अभी पुख्ता हुआ यकीन धुंधला होने लगता है।
थोड़ा आगे चलकर उसी सरकारी स्कूल में,
पढ़ाई की आस लगाए छात्रों को पढ़ाना छोड़,
मिड डे मील के अनाज का हिसाब करते व
आने वाले किसी सरकारी सर्वे में ड्यूटी को कोसते
शिक्षकों को देख, शिक्षा का हाल कुछ और नज़र आता है।
मिड डे मील व् अन्य सरकारी ड्यूटियों से फारिग
शिक्षकों के बचे हुए समय में पढ़ते सरकारी स्कूल के छात्रों व्
किसी निजी स्कूल की संपन्न प्रयोगशाला में ,
एकाग्रता से हर प्रश्न का उत्तर पाते छात्रों को देख,
समान शिक्षा के अधिकार का भ्रम जाल टूटने लगता है।
अब दोष चाहे सरकारी शिक्षकों पर लाद दें,
शिक्षकों से शिक्षा छोड़ अन्य ड्यूटियां लेती सरकारी नीतियों पर,
कम आय के चलते अपने बच्चों को निजी स्कूलों में
पढ़ा पाने में असमर्थ अभिवावकों पर लाद दें,
मगर शिक्षा के समान अधिकार हैं ये तो नहीं लगता है।
जब देश में व्याप्त दोहरी शिक्षा नीति के चलते,
सभी नौनिहालों को शिक्षा के समान अधिकार न मिल पाएं,
जब सरकारों की रूचि बच्चों को समान शिक्षा भूलकर,
किन्ही और चीज़ों में हो तो अपने देश के भविष्य से,
बहुत ज़्यादा उमीदें रखना बेमानी लगता है।।
- बोगल सृजन
हाँ सुना तो है हमने कि
हमारे महान लोकतंत्र का संविधान,
किसी अन्य मौलिक अधिकार जैसे ही,
छोटे-बड़े या गरीब-अमीर का भेद जाने बिना,
सभी को समान शिक्षा का अधिकार देता है।जब दिखती हैं हमें सर्व शिक्षा अभियान व
शिक्षा के अधिकार जैसी सरकारी योजनाऐं,
जब निजी स्कूल की लक्ज़री बस से निकलते बच्चे
भारत के उपग्रह कार्यक्रम पर चर्चा करते दिखें
तो यह यकीन पुख्ता होने लगता है।
मगर उसी बस के सामने से फटी नज़रों से,
फटेहाल जूते व मैली वर्दी पहने और
फ़टी पुरानी किताबें लिए गुज़रते हैं जब
किसी सरकारी स्कूल के बच्चे,
तो अभी-अभी पुख्ता हुआ यकीन धुंधला होने लगता है।
थोड़ा आगे चलकर उसी सरकारी स्कूल में,
पढ़ाई की आस लगाए छात्रों को पढ़ाना छोड़,
मिड डे मील के अनाज का हिसाब करते व
आने वाले किसी सरकारी सर्वे में ड्यूटी को कोसते
शिक्षकों को देख, शिक्षा का हाल कुछ और नज़र आता है।
मिड डे मील व् अन्य सरकारी ड्यूटियों से फारिग
शिक्षकों के बचे हुए समय में पढ़ते सरकारी स्कूल के छात्रों व्
किसी निजी स्कूल की संपन्न प्रयोगशाला में ,
एकाग्रता से हर प्रश्न का उत्तर पाते छात्रों को देख,
समान शिक्षा के अधिकार का भ्रम जाल टूटने लगता है।
अब दोष चाहे सरकारी शिक्षकों पर लाद दें,
शिक्षकों से शिक्षा छोड़ अन्य ड्यूटियां लेती सरकारी नीतियों पर,
कम आय के चलते अपने बच्चों को निजी स्कूलों में
पढ़ा पाने में असमर्थ अभिवावकों पर लाद दें,
मगर शिक्षा के समान अधिकार हैं ये तो नहीं लगता है।
जब देश में व्याप्त दोहरी शिक्षा नीति के चलते,
सभी नौनिहालों को शिक्षा के समान अधिकार न मिल पाएं,
जब सरकारों की रूचि बच्चों को समान शिक्षा भूलकर,
किन्ही और चीज़ों में हो तो अपने देश के भविष्य से,
बहुत ज़्यादा उमीदें रखना बेमानी लगता है।।
- बोगल सृजन
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