Wednesday 25 October 2017

रचनाओं पर प्रश्न

रचनाओं पर प्रश्न


हाँ, मैंने माना कि
प्रेम के गीत मैं नहीं लिखता,
प्रकृति की सुंदरता का बखान करती
कोई रस भरी कविता भी मैं नहीं लिखता।

मैंने ये भी माना कि
अपने चहुँ ओर फैली चकाचौंध से
प्रतीत होती खुशहाली व समृद्धि पर भी,
मैं कुछ नहीं लिखता।

ये आरोप भी मैं ले लेता हूँ कि
विकास के नाम पर बन रही
गगनचुंबी इमारतों व पुलों आदि की
तारीफ सुनाता कोई नगमा मैंने नहीं लिखा।

ये सब मानता हूँ फिर भी
श्रृंगार रस पर लिखुं मैं लगता तो नहीं,
क्योंकि यौवन का रसपान करती रचनाएं,
बहुत लिखी गयी और लिखी जाएंगी।

समृद्धि व खुशहाली व चकाचौंध,
जो नज़र आती है कुछ दूर तलक,
कथाएं व कविताएं उनपर भी,
बहुत कही गयी और कही जाएंगी।

मगर जाने क्यो मेरी रचनाएं,
विलासता से भरपूर विशाल महलों को चीरती,
कटी-फ़टी तिरपाल से ढ़की हुई,
किसी गरीब की झोंपडी पे जा रुकती हैं।

जाने क्यों मेरी कविताएं,
मेहनतकशों के खून-पसीने से अर्जित
धन से समृद्ध धनिकों का महिमामंडन न करके,
मज़दूर की बद्तर हालत पे जा टिकती हैं।

नाना प्रकार के व्यंजन पकते हैं जब,
मेरी रसोई में फिर भी क्यों मेरी कविताएं,
फाँसी का फंदा तलाशते, कर्ज़ में डूबे,
अन्नदाता किसान पर ही जा रुकती हैं।

हाँ, ये अपराध ही है मेरा,
कि मेरी रचनायें चकाचौंध से परे,
सामाजिक कुरीतियों के बारे, व
साधारण जनमानस का दुख-दर्द सुनाती हैं।

- बोगल सृजन 

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