Tuesday 17 October 2017

काला धन: सफेद धन

काला धन: सफेद धन

धन तो धन बाज़ार में,
जब निकल पड़े लुटाने,
धन काला है या सफेद है,
ये कैसे कोई पहचाने ?

मैं सच्चा हूँ, हर कोई बोले,
चुराये हों चाहे कितने ख़जाने।
पर सच्चा शायद चीखे चिल्लाये,
उसकी फिर भी कोई न माने।

झूठ-सच और सफेद-काले का,
क्या कोई अंतर पहचाने,
घर भरते जो खुद काले धन से
वो ओरों को चले ईमान सिखाने।

सच्चाई-ईमान पर चलने वाले,
कहाँ ढूंढते फिरते हैं बहाने।
वो तो सदा सत्य-निष्ठा से चलते,
चाहे अपने-पराये भी कदर न जाने।

सफेद और काले धन की,
ये कथा कबतक चलेगी जाने।
शायद नीयत नहीं है कुछ करने की,
बस करके दिखाएंगे बहाने।

- बोगल सृजन 

No comments:

Post a Comment