भूख_का_मजहब
न ये मस्जिद की चौखट,
न तो कोई शिवाला जानती है,
न इसको कुछ गिरजे से लेना,
न ये कोई गुरुद्वारा जानती है,
ये तो पेट की आग है साहब,
ये तो रोटी का निवाला जानती है।
वही चेहरे जो भूख मिटाते दिखे थे
मुझे कल मस्जिद की चौखट पर।
आज उन्हीं को गुरुद्वारे के लंगर में
पेट की आग मिटाते देखकर आया हूँ,
तब से धर्म बड़ा है या भूख,
इसपर फैसला ही नहीं कर पाया हूँ।
जब तक पेट में अन्न होता है
तब तक हम मज़हबी फ़साद हज़ार करलें,
पर पेट की आग जब मजबूर करदे और दूर तक
जब भूख मिटाने को कुछ न हो,
तब भूख ही ज़ात भूख ही मजहब,
पड़े रह जाते बाकी मजहब सारे हैं।
- बोगल_सृजन
न ये मस्जिद की चौखट,
न तो कोई शिवाला जानती है,
न इसको कुछ गिरजे से लेना,
न ये कोई गुरुद्वारा जानती है,
ये तो पेट की आग है साहब,
ये तो रोटी का निवाला जानती है।
वही चेहरे जो भूख मिटाते दिखे थे
मुझे कल मस्जिद की चौखट पर।
आज उन्हीं को गुरुद्वारे के लंगर में
पेट की आग मिटाते देखकर आया हूँ,
तब से धर्म बड़ा है या भूख,
इसपर फैसला ही नहीं कर पाया हूँ।
जब तक पेट में अन्न होता है
तब तक हम मज़हबी फ़साद हज़ार करलें,
पर पेट की आग जब मजबूर करदे और दूर तक
जब भूख मिटाने को कुछ न हो,
तब भूख ही ज़ात भूख ही मजहब,
पड़े रह जाते बाकी मजहब सारे हैं।
- बोगल_सृजन
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