सहारा अपनों का
सहारा छोड़ अपनों का,
निकला था मैं जब बाहर,
लगा ऐसे था मुझको के,
बड़ा कोई तीर मारा है।
बड़ी बेदर्दी से जब मैंने,
दिल अपनों का तोड़ा था,
कहाँ सोचा था तब मैंने
दर्द का कोई तार छेड़ा है।
लगा मुझको था ये शायद,
कि क्या अपना बेगाना है,
किसी भी गर्ज़ पर अपनी,
मुझे बस बदला चुकाना है।
बेगानों के धोखे ने ही,
सिखाई मुझे अब सीख जीवन में,
कि निश्चल प्रेम व आदर,
बस अपनों से ही मिल पाना है।
सीखा है जो अब मैंने,
वो शायद जान ही न पाता,
कि कीमत अपनों के अहसानों की,
बड़ा मुश्किल लगाना है।।
#बोगल_सृजन
सहारा छोड़ अपनों का,
निकला था मैं जब बाहर,
लगा ऐसे था मुझको के,
बड़ा कोई तीर मारा है।
बड़ी बेदर्दी से जब मैंने,
दिल अपनों का तोड़ा था,
कहाँ सोचा था तब मैंने
दर्द का कोई तार छेड़ा है।
लगा मुझको था ये शायद,
कि क्या अपना बेगाना है,
किसी भी गर्ज़ पर अपनी,
मुझे बस बदला चुकाना है।
बेगानों के धोखे ने ही,
सिखाई मुझे अब सीख जीवन में,
कि निश्चल प्रेम व आदर,
बस अपनों से ही मिल पाना है।
सीखा है जो अब मैंने,
वो शायद जान ही न पाता,
कि कीमत अपनों के अहसानों की,
बड़ा मुश्किल लगाना है।।
#बोगल_सृजन
Ati sundar jii
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