Wednesday 29 November 2017

सच्चाई का सच

सच्चाई का सच

सत्य, निष्ठा व कर्तव्य परायणता,
गुज़रे ज़माने की ही पड़ती जान है,
व्यक्तिगत स्वार्थ को देकर तिलांजलि,
कर्म को धर्म मान निष्ठा से जो लगे रहे,
ऐसे लोगों की अब कहाँ पहचान है।

आडम्बरों से ऐसा आकर्षक हुआ असत्य,
कि सत्य को भी चाहिए अब प्रमाण हैं।
भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी व असत्य का अनुसरण
जो सदा करते रहे जीवन प्रयन्त,
वही सत्य, ईमानदारी के अब पैरोकार हैं।


बेईमानी व भ्रष्टाचार का छाया घना कोहरा ऐसा,
कि सच्चाई की राह अब नहीं आसान है।
सच परखने वाले जौहरी अब मिलते कहाँ,
फ़ूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ता है यहाँ,
क्योंकि सच्चाई व ईमान वालों पर अब इल्ज़ाम हैं।।

- बोगल सृजन

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