Friday 20 April 2018

लघु कथा - सच्चा सुख


रोहित एक बड़ी कम्पनी में एक बहुत बड़े पद पर कार्यरत था। दिनरात काम, न घर वालों के लिये समय, न यार-दोस्तों के लिए। बस पैसे कमाने की दौड़ में दिनरात पिसा रहता था। पत्नी से अक्सर झगड़े होते की बच्चों को समय नहीं देते, कहीं घुमाने नहीं ले जाए तो इसपर रोहित अक्सर कहता कि ये जो मैं जान खपाता हूँ तुम लोगों के सुख और आराम के लिए ही है।

एक दिन बातों-बातों में रोहित ने अपनी कम्पनी के एक निम्न कर्मचारी महेश से पूछा कि इतने कम वेतन में तुम घर का गुजारा कैसे करते हो जबकि तुम तो ओवरटाइम भी नहीं करते? तो उसने जवाब दिया कि मैं अपना कीमती समय अपने परिवार को देता हूँ। सुविधाएं चाहे कुछ कम हों पर छोटे-छोटे पलों को परिवार के साथ जीने का जो सुख मिलता है वो पैसों की गर्मी में कहां। महेश की बात सुनकर रोहित आगे बढ़ गया मगर वो बात उसके दिमाग में घूम रही थी और वो सोच रहा था कि वो किस सुख की तलाश में जीवन व्यर्थ कर रहा है।

- स्वर्ण दीप बोगल 

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