आसमान से ऊँचा तो न सही,
फिर भी ऊँचा है मेरा स्वाभिमान,
जो बड़ो की इज़्ज़त करना जानता है,
सहकर्मियों के साथ मिलकर
मिट्टी से मिट्टी होना जानता है,
ये ग़ल्ती पर तो चुपचाप सब सह लेता है,
बस कोई ओछी बात नहीं सुनता।
नहीं सुनता कोई भी प्रश्न,
बरसों की मेहनत से निर्मित अपने चरित्र पर।
ये मेरा स्वाभिमान ही है
जो मुझे मेहनत व निष्ठा से
कर्म करने पर मजबूर करने के साथ ही,
अपने हक़ों की लड़ाई लड़ने का
भरपूर उत्साह भी देता है।।
- स्वर्ण दीप बोगल
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