Friday 23 March 2018

कविता - शहीदों_को_नमन


कितने बसंत हैं बीत चुके,
फिर भी हमसब के हृदयों में,
हाँ, नाम तुम्हारे बाकी हैं।
हो इस दिल में या उस दिल में,
पर इंक़लाब की थी जो जगाई,
वो आग कहीं तो बाकी है।।

जिस आयु में हम पापा से,
बस फरमाइश करते थे,
उस किशोर अवस्था में तुम
पुलिस के डंडे झेल गये।
प्रणय निवेदनों की चिंता में,
जब दर-दर थे हम घूम रहे,
आज़ादी के सपने की खातिर,
तुम फाँसी का फंदा चूम गए।।

अपने प्राणों को देश की खातिर,
हँसते-हँसते तुम वार गये।
स्वतंत्रता पाने की ज़िद की खातिर,
अपना सर्वस्व तुम हार गये।
क्या हम कभी चुका पाएंगे,
जो कर्ज़ तुम्हारे बाकी हैं।
फ़र्ज़ निभा तुम विदा हो गए,
कुछ फ़र्ज़ हमारे बाकी हैं।।

- बोगल सृजन

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