Wednesday 7 March 2018

कविता - मेरी माँ

वैसे तो बहुत हैं लोग मेरे खास,
जिनके लिए हृदय में हैं मधुर अहसास,
मगर फिर भी त्याग, समर्पण,
निःस्वार्थ प्रेम और दया की प्रतिमा,
मेरी माँ पर वार दूँ मैं अपनी हर साँस,
उनके प्रेम के आगे फ़ीका हर अहसास।।

उनकी आँखों ने नींद न देखी,
मेरे लिये भूली बैठी वो भूख और प्यास,
अपने सुख-दुख वो कहां सोचती,
मेरे सुख, आराम व खुशी की है उसे सदा आस,
मेरी माँ पर वार दूँ मैं अपनी हर साँस,
उनके प्रेम के आगे फ़ीका हर अहसास।।

मेरे प्रेम में खुद को भूली,भूली हर इक बात,
न शिकन, न कोई चिंता उनको दिन और रात।
मुँह से मैं बोलूँ न बोलूँ, पर जानूँ हर इक बात,
तेरा कर्ज़ चुका पाऊं माँ, मेरी न औकात।
मेरी माँ पर वार दूँ मैं अपनी हर इक साँस,
उनके प्रेम के आगे फ़ीका हर अहसास।।

© बोगल सृजन 

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