Thursday 8 March 2018

कविता - रहने दो मुझे इंसान

#रहने_दो_मुझे_इंसान 

बस नहीं चाहिए और मुझे,

देवी का जो दिया है स्थान।
बस नहीं चाहिए अब और मुझे,
कोरी बातें और कोरा ज्ञान।
राह किसी पे, मोड़ किसी पे,
कार्यक्षेत्र हो या शिक्षा संस्थान,
भद्दे शब्द और टिप्पणियां न चाहूँ,
चाहूँ बस अपना सम्मान,
न चाहूँ अब देवी का स्थान,
बस रहने दो मुझे इंसान।।

आज हूँ जो कुछ,

मेरे लिए न था आसान।
वर्षों के संघर्ष को अपने,
कैसे लगने दूँ आज विराम।
बहन किसी की, बेटी किसी की,
पर अपना भी रखती हूँ स्थान,
बाज़ारों में बिकने वाला, 
नहीं हूँ मैं कोई सामान,
न चाहूँ देवी का दर्जा,
बस रहने दो मुझे इंसान।।

चूल्हे-चौंके को छोड़ निकलना,

मेरे लिए आसान न था
गृहस्थी के साथ चलाना,
कार्यक्षेत्र आसान न था,
इतने संघर्षों के बनी हमारी,
कम न होने दूँगी मैं पहचान।
अब न सुनूंगी शब्द एक भी,
कहा गया जो अबला जान
न चाहूँ अब देवी का स्थान,
बस रहने दो मुझे इंसान।।

#बोगल_सृजन 











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