Sunday 4 March 2018

कविता - अभी-अभी

अभी-अभी मेरे मन में इक विचार आया है,
जैसे मेरे लहू में कोई उबाल आया है,
बाकी कुल दुनिया को छोड़,
कर्ज़ कुछ माँ-बाप के भी याद करलें,
अभी-अभी मेरे मन में ये ख्याल आया है,
जैसे मेरे लहू में कोई उबाल आया है।।

बचपन में किसी अनहोनी ज़िद के लिए,
जब भी मैं रोया चिल्लाया था,
अपनी हैसियत की चादर को लांघ कैसे,
माँ-बाबा ने हर बार मुझे वो सब दिलवाया था,
अभी-अभी मेरे मन में ये ख्याल आया है,
जैसे मेरे लहू में कोई उबाल आया है।।

वो माँ का मेरे हर बार रूठने पर मनाना,
अर्धनिद्रा में भी मुझे खाना खिलाना।
खुद पुराने व मुझे नए-नए कपड़े दिलवाना,
वो पापा का पाई-पाई मेरी शिक्षा पे लुटाना।
अभी-अभी मुझे फिर ये याद आया है,
जैसे मेरे लहू में कोई उबाल आया है।।

माँ-बाबा तो फ़र्ज़ निभा बैठे हैं,
मेरे हिस्से के तो अभी बाकी हैं,
कहाँ मैं कर्ज़ चुका पायउँगा मगर फिर भी
चंद लम्हें खुशियों के लौटा पाऊं अगर,
ये ख्वाहिश तो अभी बाकी है
अभी-अभी मेरे मन में ये ख्याल आया है,
जैसे मेरे लहू में कोई उबाल आया है।।

#बोगल_सृजन

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