Sunday 11 March 2018

कविता - वह अबोध सा बालक

वह अबोध सा बालक,
जिसके मुखमण्डल पर भूख की पीड़ा,
साफ तौर नज़र आ रही थी।
और जिसकी आयु में मुझे स्वंय
निवाला तोड़ना तक नहीं आता था।
बस माँ-बाप को नाज़-नखरे दिखाकर मैं,
जब बस्ता उठाकर बस स्कूल को जाता था। 

सुबह-सबेरे कम्पकम्पाती सर्दी में,
जब गाड़ी ब्लोअर के बगैर चलाने में,
मेरा शरीर ठिठुरता जा रहा था।
वह अबोध सा बालक,
पीठ पे कटा-फटा झौला टांगे,
कचरे के ढेर से कुछ निकाल,
भूखे खुद्दार पेट का जुगाड़ लगा रहा था।।

उसकी आयु में जब मैं अपनी मम्मी को,
अपने बैग का बोझ थमा रहा था,
अध्यापिका को सबक सुना रहा था,
और वह अबोध सा बालक,
अपने नन्हे कन्धों पर शायद,
परिवार की जिम्मेदारी का बोझ उठाए,
अपना मासूम बचपन गंवा रहा था।।

मेरे राष्ट्र का सुंदर भविष्य,
जो सकता था किसी प्रयोगशाला में,
वो कहाँ-कहाँ धक्के खा रहा है।
बहुत पीड़ा हुई ये देखकर,
वह अबोध सा बालक,
कचरे में बचपन गंवा रहा है।।

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