Friday 12 May 2017

कविता - हमें याद है ये लगता तो नहीं

कविता 

हमें याद है ये लगता तो नहीं 

वो बचपन की मासूमियत
दोस्तों से झगड़ना वो रूठना मनाना 
किसी के पेड़ों से आम चुराना 
वो पापा से पीटना और मम्मी का बचाना 
गले से लगाकर प्यार से समझाना 
हमें याद है ये लगता तो नहीं 

वो दादी का हमको किस्से सुनाना 
मेहनत ईमान का पाठ पढ़ाना 
वो गुरूजी का आना व हमको समझाना 
सत्य व प्रेम की ताकत बताना 
एकता भाईचारे की मिसालें सुनाना 
वो देशवासियों व देश से प्रेम सिखाना 
हमें याद है ये लगता तो नहीं 

ये झूठों की दुनिया 
और पग पग पे धोखा 
ये अपनों से नफरत 
चढ़ी लालच की पट्टी
लाशों पे चढ़कर यहां होती हुकूमत 
फिर वो बचपन की मासूमियत
हमें याद है ये लगता तो नहीं 

 स्वर्ण दीप 

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