कविता
इक अदद दोस्त की कमी
यूँ तो ज़िन्दगी चलती है
मगर फिर भी इस दिल में
इक अदद दोस्त की कमी अखरती तो है
यूँ तो हँसते हैं कभी रोते हैं
ज़िन्दगी के सीखे तरीके हैं
मगर फिर भी
खुशियां सांझा करने और
तकलीफ में इक कन्धा ढूंढने को
इक अदद दोस्त की कमी अखरती तो है
यूँ तो खाते हैं पीतें हैं
भ्रमणों पे जाते हैं
ज़िन्दगी के लुत्फ़ उठाते हैं
मगर फिर भी
बिना काम घंटों गप्पें मारने को
इक अदद दोस्त की कमी अखरती तो है
यूँ तो भरा पूरा परिवार है
प्यार करने को नाज़ करने को
यूँ तो संगी साथी हैं
कार्यक्षेत्र में घर परिवार में
बार करने को साथ चलने को
मगर फिर भी इस दिल में
इक अदद दोस्त की कमी अखरती तो है
– स्वर्ण दीप
comments please....
ReplyDeleteNice poem, keep it up
ReplyDeletethanx for your kind words dear...
DeleteNice
ReplyDeleteYour welcome :)
ReplyDeletenowadays we tend to be more happy... we pose our lives as perfect to others..in fact we dont even want to disclose our despair and distress to ourselves too...so..such connections rarely exist but i believe ... ik addad dost ki zaroorat hamesha hoti hai...so true...
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