श्रृंगार रस मैं कैसे लिख पाऊं
जब फैली है घटा काली
चहुँ ओर अँधियारा है
हर तरफ चीखो पुकार है
और दर्द का बोलबाला है
श्रृंगार रस मैं कैसे लिख पाऊं
देश का अन्नदाता किसान
जब आत्महत्या को मजबूर हुआ
खाने को घटिया कहने पर जब
जवान बर्खास्त हुआ
सरहद पर लड़ने वालों के
शवों से जब दुर्व्यवहार हुआ
श्रृंगार रस मैं कैसे लिख पाऊं
जब मैं और मेरा हावी है
कुछ मुझपर भी और तुझपर भी
जब लोभ और क्रोध भी हावी है
कुछ तुझपर भी और मुझपर भी
जब जान की कीमत कुछ भी नहीं
वो मेरी क्या और तेरी क्या
श्रृंगार रस मैं कैसे लिख पाऊं
– स्वर्ण दीप
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