कविता
अभी बस लगने ही लगा था
अभी बस लगने ही लगा था कि
मनु द्वारा स्थापित वर्ण व्यवस्था
गुज़रे समय की बात है।
अभी बस लगने ही लगा था कि
जात पात की घृणित मानसिकता
हम लगभग भूल चुके हैं।
अभी बस लगने ही लगा था कि
बाबा साहेब द्वारा शुरू किये गए
समाजिक आधार पर आरक्षण की हमें
अब ज़रूरत नहीं है।
अभी बस लगने ही लगा था कि
सबको शिक्षा और कार्य
योग्यता के आधार पर ही मिलना चाहिए।
अभी बस लगने ही लगा था कि
अभी बस लगने ही लगा था कि
ऊँच नीच और भेदभाव छोड़,
दलितों व स्वर्णों को
बराबर इंसान समझा जाता है।
मगर बीते दिनों कुछ घटनाओं ने,
दिल में बहुत पीड़ा पहुंचाई है।
ज़ात-पात की ज़हरीली हवा,
जब फिर से किसी ने जलाई है।
राजनीति के तो चूल्हे जल रहे हैं,
और दोनों तरफ के घरोंदे जल रहे हैं,
बैर व घृणा के जब नकाब हट चुके हैं,
दोनों ओर से जब तीर खिंच चुके हैं,
जात पात बीते ज़माने की बात है,
यह अब लग नहीं पा रहा है।
– स्वर्ण दीप बोगल
अभी बस लगने ही लगा था
अभी बस लगने ही लगा था कि
मनु द्वारा स्थापित वर्ण व्यवस्था
गुज़रे समय की बात है।
अभी बस लगने ही लगा था कि
जात पात की घृणित मानसिकता
हम लगभग भूल चुके हैं।
अभी बस लगने ही लगा था कि
बाबा साहेब द्वारा शुरू किये गए
समाजिक आधार पर आरक्षण की हमें
अब ज़रूरत नहीं है।
अभी बस लगने ही लगा था कि
सबको शिक्षा और कार्य
योग्यता के आधार पर ही मिलना चाहिए।
अभी बस लगने ही लगा था कि
जाति के आधार पर,
खुद को श्रेष्ठ और दूसरों से घृणा,
किस्से कहानियों की बातें हैं।
खुद को श्रेष्ठ और दूसरों से घृणा,
किस्से कहानियों की बातें हैं।
अभी बस लगने ही लगा था कि
ऊँच नीच और भेदभाव छोड़,
दलितों व स्वर्णों को
बराबर इंसान समझा जाता है।
मगर बीते दिनों कुछ घटनाओं ने,
दिल में बहुत पीड़ा पहुंचाई है।
ज़ात-पात की ज़हरीली हवा,
जब फिर से किसी ने जलाई है।
राजनीति के तो चूल्हे जल रहे हैं,
और दोनों तरफ के घरोंदे जल रहे हैं,
बैर व घृणा के जब नकाब हट चुके हैं,
दोनों ओर से जब तीर खिंच चुके हैं,
जात पात बीते ज़माने की बात है,
यह अब लग नहीं पा रहा है।
– स्वर्ण दीप बोगल
it takes courage to write on caste system..not only you wrote it well but also conveyed your moral successfully...
ReplyDeletethanx for appreciation...
DeleteVery true
Deletewell done...keep it up...
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