Tuesday 30 May 2017

कविता - ज़िन्दगी

कविता
ज़िन्दगी

कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है
ये ज़िन्दगी है साहब 
बड़े ही रंग दिखाती है

ज़ुबान से निकले एक शब्द से ही
परायों को अपना व अपनों को पराया बनाती है
ये ज़िन्दगी है साहब 
बड़े ही रंग दिखाती है

कभी अहम के नाम पर 
तो कभी आत्मसम्मान के नाम पर
एक ज़रा सी गलतफहमी भी
हमें अपनों से दूर करवा जाती है
ये ज़िन्दगी है साहब 
बड़े ही रंग दिखाती है

कभी खुद को एक तुच्छ प्राणी
तो कभी महाराजा महसूस करवाती है
कभी भरा पूरा परिवार
तो कभी तन्हा बना जाती है
ये ज़िन्दगी है साहब 
बड़े ही रंग दिखाती है

- स्वर्ण दीप बोग़ल

4 comments:

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  2. कुछ ज़रूरतें पूरी तो कुछ ख्वाहिशें अधूरी,
    इन्ही सवालों के जवाब हैं ज़िन्दगी
    लम्हों की खुली किताब हैं ज़िन्दगी,
    ख्यालों और सांसों का हिसाब हैं ज़िन्दगी...

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  3. life must be full of these sweet n sour moments.... we grow with them...we get strong with them..... SD..you did a great job once again.... awesome...loved it

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