Wednesday 17 May 2017

कविता - आलोचक

कविता  

आलोचक 

वो कहते हैं की तुम कच्चे हो 
दिल के अभी तक बच्चे हो 
कुछ जान नहीं पाते हो 
जो करते हैं तुम्हारी आलोचना 
उन्ही की प्रशंसा करते जाते हो 

मैंने कहा माना की हम कच्चे हैं 
समझ के भी शायद बच्चे हैं 
पर इतना तो समझते हैं की 
वह जो आलोचक समर्पित हैं 
झुठी चाटुकारिता से बचते हुए 
सत्य के वो रक्षक हैं 

आलोचना तो ज़रूरी है 
मैं के लिए और मेरे लिए 
बेहतर के लिए प्रगति के लिए 
व आलोचक के अस्तित्व के लिए 

 स्वर्ण दीप

2 comments:

  1. Healthy Criticism is must for progress. Criticism for d sake of Criticism brings only harm.

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