सदियों से जीती आई हूँ
कभी सम्मान के नाम पर]
तो कभी नसीबों की दुहाई देकर]
कभी देवी बताकर
तो कभी चरित्रहरण करके]
कभी बहुरानी बनकर]
तो कभी दहेज़ के लोभियों के हाथों जलकर]
कभी पिता] भाई या पति के सरंक्षण में]
तो कभी गिद्ध सी नज़रों के साये में]
सदियों से जीती आयीं हूँ
वेदना गर मेरी समझ सको तो]
इतना सा अहसान करो
हाड&मांस की हूँ मैं भी]
वस्तु जान न व्यवहार करो]
हर क्षेत्र में चुनौती देकर भी]
क्यों अबला कहलाई हूँ
मेरी भी पहचान स्वयं की]
फिर क्यों बेटी] बहन या
पत्नि ही कहलाई जाती हूँ
हृदय में टीस लिए यह
सदियों से जीती आयी हूँ
- स्वर्ण दीप
- स्वर्ण दीप
comments please.....
ReplyDeleteIt's the fire in my eyes,
ReplyDeleteAnd the flash of my teeth,
The swing in my waist,
And the joy in my feet.
I'm a woman
Phenomenally.
Phenomenal woman,
That's me....brilliant writing...