Monday 8 May 2017

सदियों से जीती आई हूँ

सदियों से जीती आई हूँ

कभी सम्मान के नाम पर]
तो कभी  नसीबों की दुहाई देकर]
कभी देवी बताकर 
तो कभी चरित्रहरण करके]
कभी बहुरानी बनकर]
तो कभी दहेज़ के लोभियों के हाथों जलकर]
कभी पिता] भाई या पति के सरंक्षण में]
तो कभी गिद्ध सी नज़रों के साये में]
सदियों से जीती आयीं हूँ

वेदना गर मेरी समझ सको तो]
इतना सा अहसान करो
हाड&मांस की हूँ मैं भी]
वस्तु जान न व्यवहार करो]
हर क्षेत्र में चुनौती देकर भी]
क्यों अबला कहलाई हूँ 
मेरी भी पहचान स्वयं की]
फिर क्यों बेटी] बहन या 
पत्नि ही कहलाई जाती हूँ 
हृदय में टीस लिए यह 
सदियों से जीती आयी हूँ 


   - स्वर्ण दीप 

2 comments:

  1. It's the fire in my eyes,
    And the flash of my teeth,
    The swing in my waist,
    And the joy in my feet.
    I'm a woman
    Phenomenally.
    Phenomenal woman,
    That's me....brilliant writing...

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