Tuesday 23 May 2017

कविता - खुद से शुरू करना होगा

कविता 

खुद से शुरू करना होगा 


माना हालात नागवार हैं 
लोगों के चेहरों पर नकाब हैं 
माना झूठ और फरेब 
लोगों का धर्म ईमान हैं 
माना भरोसा तोड़कर 
आगे बढ़ने का चलन सरेआम है 
मगर इस दौर को कभी तो बदलना होगा 
किसी और से ना सही 
खुद से तो शुरू करना होगा 

माना मेहनत व ईमानदारी में 

किसी विरले का ही विश्वास है 
किसी तरह दिन कट जाएँ 
सभी को यही आस है 
माना चापलूसों की तूती बोले  
और निष्ठांवानो का बुरा हाल है
मगर इस दौर को कभी तो बदलना होगा 
किसी और से ना सही 
खुद से तो शुरू करना होगा 
ढृढ़ संकल्प करना होगा 
कर्म को धर्म मान 
निष्ठा मेहनत  व ईमानदारी 
की राह पर चलना होगा 


 स्वर्ण दीप बोगल

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