Sunday 30 July 2017

कविता - मेरी व्यथा

कविता - मेरी व्यथा

देवराज इंद्र के कपट की,
थी शिकार मैं फिर भी,
महर्षि कपिल द्वारा अभिशप्त,
मैं ही क्यों पाषाण हुई। 
हाँ, अहिल्या ही थी तब मैं

रावण की कैद से अधिक,
पीड़ादायक अग्निपरीक्षा देकर भी,
बस एक उलाहने पर ही,
क्यों मैं ठुकराई गई। 
हाँ, सीता ही थी तब मैं

क्या उम्मीद गैरों से रखती,
दुश्शासन को मैं दोष क्या देती,
जब धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा ही,
सम्पत्ति जैसी मैं जुए में हारी गई। 
हाँ, द्रौपदी ही थी तब मैं

भिन्न कालों के शाही पुरुषों का,
क्या-क्या मैं बखान करूं,
अन्तःपुरा हो या हरम कोई,
बन्द पर्दों में ही मैं छुपाई गई। 
हाँ, शाही परिवार से ही थी मैं

कहीं जन्म लेते ही मृत्यु पाती,
मृत पति संग सती की जाती,
अरमानों का गला घोंटकर,
सब कुछ बस सहती ही जाती। 
यही है इतिहास मेरा,
हाँ, एक स्त्री ही थी मैं

- स्वर्ण दीप बोगल 

Saturday 29 July 2017

कविता - घर की इज़्ज़त

कविता - घर की इज़्ज़त

जब मुड़कर पीछे मैंने देखा
कि क्या पाया क्या खोया हमने
तो जाना कि बदलती परिस्थितियों में ,
जीवन जीने का तरीका बदला
इस पितृसत्तात्मक समाज का
हर रंग-रूप व ताना-बाना बदला
कुछ हालात मेरे भी बदले
पिंजड़ा भी कुछ कुछ तोड़ पायी मैं

फिर भी कुछ बातें मेरे प्रति
अभी तक प्रचलन में हैं
प्रतक्ष्य नहीं तो किताबों में सही
देवी मैं आज भी मानी जाती हूँ
आज भी हर घर समाज की मैं
इज़्ज़त ही मानी जाती हूँ
जिसे तार-तार करने में 
विरोधी विजय समझते  हैं

ये कैसी इज़्ज़त मेरी है
अब तक मैं समझ न पाती हूँ
जो बेजान सम्पत्ति जैसी
छुपाई व संभाली जाती हूँ
बहुत हुआ अब सहते सहते
अब इतना तो अहसान करो
न वस्तु हूँ और न कोई देवी
बस मनुष्यों सा व्यवहार करो

-स्वर्ण दीप बोगल

Wednesday 26 July 2017

कविता - लाचार बचपन

कविता - लाचार बचपन

बेमानी सी लगती है मुझे,
चहुँ ओर फैली चकाचौंध,
विकास के नाम पर बनती
बड़ी-२ गगनचुंबी इमारतें,
व विशाल शॉपिंग मॉल्स,
जब मासूम बच्चों को नालियों में,
कूड़ा बीनते हुए देखता हूँ।

वैसे तो लगता है कि
करली तरक्की हमने बहुत,
महंगे होटलों में जब जाते हैं,
दावतें जब हम उड़ाते हैं,
मगर सिहर उठता हूँ अंदर तक मैं,
जब मासूम बच्चों को कूड़ेदानों से,
बचा-खुचा खाना चुनते देखता हूँ।

विकास के नाम पर की गई,
हर बात तब मुझे निरर्थक लगती है,
जब इस महान राष्ट्र के भविष्य को,
मासूम अबोध बालकों को, 
एक एक दाने के लिए,
अपने लिए और अपने परिवार के लिए,
मैं इतना लाचार देखता हूँ

कैसे मानूं कि तरक्की करली बहुत,
जब तक एक भी मासूम बचपन मजबूर है,
नालियों से कूड़ा चुनने को,
विद्यालयों में पढ़ाई करने के स्थान पर,
मेहनत मशक्कत व मज़दूरी करने को,
भूखे पेट की आग बुझाने के लिए,
दर-दर ठोकरें खाने को।।

- स्वर्ण दीप बोगल

Thursday 20 July 2017

कविता - युवा शक्ति

कविता - युवा शक्ति

वर्षों से सुनता आया हूँ
कि विश्वशक्ति बनेगा भारत
क्योंकि सबसे विशाल
युवा जनसमूह का देश है यह
मगर बस कहने भर से
कैसे ये हो पायेगा
जब देश का पढ़ा लिखा युवा
एक एक नौकरी के लिए
हज़ारों की भीड़ में धक्के खायेगा

सरकारी क्षेत्र की क्या बात करें
निजी क्षेत्र का भी बुरा हाल है
कम नौकरियों के चलते फैला
वहां भी अब भाई भतीजावाद है
फौज खड़ी है युवा बेरोजगारों की
अपनी शारीरिक व मानसिक
कुशलता बाज़ार में बेचने को
मगर योग्य को भी काम मिलना
अब यहाँ कौन सा आसान है

युवाओं का तो अब बुरा हाल है
क्योंकि पिता द्वारा लिया गया
शिक्षा पर ऋण भी तो याद है
किसी भी तरह काम मिले यही आस है
टूटती आस युवाओं की
क्या क्या कहर ढा रही है
कहीं नशों में, कहीं अवसाद में,
तो जुर्म की दलदल में
गहरा उनको धंसा रही है

मगर कैसे विश्वशक्ति बनेगा भारत
जब सक्षम युवा विदेशों में
काम करने को मजबूर है
जब सरकारों के पास योजनाएं तो हैं
मगर ज़मीनी हक़ीक़त में
काम के अवसर ही नहीं
मिल पा रहे या तलाशे जा रहे हैं
जब संसाधन नहीं युवा जनसमूह के लिए,
काम के लिये, जीवन यापन करने के लिये

- स्वर्ण दीप बोगल

Tuesday 18 July 2017

कविता - मज़दूर

कविता - मज़दूर का दिन 

सुखा पसीना कल का, 
आधे अधूरे पेट से, 
मैं निकल पड़ा हूँ आज, 
फिर मज़दूरी बेचने।

परवाह न मुझे, 
ठिठुराती सर्दी की 
न ही मुझको, 
झुलसाती गर्मी की

डरूं मगर मैं, 
बेरहम बारिश से 
कि कहीं दिहाड़ी 
टूट न जाए 

मेरे बच्चों को 
मिलने वाली 
रोटी का सपना भी 
कहीं टूट न जाए

रोज़ कमाता हूँ 
मैं रोज़ खाता हूँ 
बचा के रखने के लायक 
कहाँ कमा पाता हूँ 

खून पसीना बहाता हूँ 
बदले में क्या पाता हूँ 
फिर भी मालिकों, ठेकेदारों की 
झिड़कें मैं खाता हूँ 

उनकी उम्मीद पर 
खरा कैसे उतरूं मैं मज़दूर हूँ 
कल फिर बेचने को 
मज़दूरी कुछ बचाता हूँ 


- स्वर्ण दीप बोगल 

Sunday 16 July 2017

ख़ुफ़िया मिशन

मैने सुना ज़िंदगी हो जाती है आसान,
दुख सुख बांटने से एक दूसरे से।
फिर भी न जाने कुछ लोग
ज़िन्दगी को अपनी जीते हैं ऐसे,
ख़ुफ़िया मिशन कोई चल रहा हो जैसे।।

Saturday 15 July 2017

#MOVIEREVIEW – #JAGGA JASOOS – (2017)

#MOVIEREVIEW – #JAGGA JASOOS – (2017)



Today I am here again with the review of one of the movie released this Friday i.e. JAGGA JASOOS (2017), an Anurag Basu’s film starring Ranbir Kapoor, Katrina Kaif,  Saswata Chatterjee and Saurabh Shukla in lead roles.  

PLOT:
The present movie is a story of an orphan child Jagga living in a hospital and he stutter while speaking. A man, who with a broken leg who introduced himself as Tooti Footi, adopted Jagga and take him to his place. After few months, he admitted him in the Boarding School and disappeared mysteriously. Jagga grew up in the Boarding School solving cases of police but the real story lies in suspense where Jagga’s father go??

ANALYSIS:
The movie has a unique concept showing father son bond and many more things to look out be it picturesque landscapes, poetic dialogues of Ranbir Kapoor, funny accident prone Katrina Kaif or the secret mission of Professor Bagchi. A great camera work and nice music by Pritam. Rhyme #Nimbu #Mirchi by Katrina Kaif is a good one about the situation  of the society. 

But the movie was bit lengthy and some scenes need to be removed. The movie look like a marathon race where athletes are running from the word go till the finishing line. The viewer is all time confused about the location of the movie. Overall the movie really looked like a real comic book story.

What’s Good:
Fresh and interesting concept with a powerpack performance by Ranbir Kapoor. 

Loop holes in the movie:
The movie is a bit lengthy and not well presented. 

Star Peformance:- 
Ranbir Kapoor once again proved that he is a class actor. As Jagga Jasoos he has given a breathtaking performance. Katrina Kaif also does her best as a school teacher narrating the story of Jagga Jasoos. Sawasta Chaterjee as Professor Bagchi is excellent and Saurabh Shukla played his negative character with perfection.

Final words:
Fresh and interesting concept and a stellar performance by Ranbir Kapoor. Loved it....

My ratings for this movie is 2.5 out of 5 stars.

So keep following the page, good day till the next review


Bogal | R E V I E W S

कविता - क्या ये प्रेम है

कविता - क्या ये प्रेम है   

क्या सुनाऊँ मैं किस्सा-ए-उल्फ़त
ये वो शह नहीं जो कभी न सुनाई गई
हीर-रांझा हो या रोमियो-जूलिएट
हर दौर में हर समाज में ये दोहराई गई
इश्क़ लेने का नहीं जान देने का नाम है
ये बात भी इस जहां को बतलाई गयी
पाने खोने या जीत हार की यहां बात नहीं
बस दीदार-ए-यार को भी मिन्नतें उठाई गई

परिभाषा को प्रेम की लगता है

सबने ही आज भुलाया है
एक तरफा पसंद को ही बहुतों ने प्रेम बनाया है
अपने तक ही रखते इसको
तब भी तो कोई बात न थी
न सुनते ही आपा खोना ये क्या प्रेम तुम्हारा है
बस पाने की चाहत मन में 
इश्क़ को व्यापार बनाया है

प्रेम प्रस्ताव जो ठुकराया गया तो 
अनहोनी कोई बात नहीं 
तेज़ाब फैंककर पौरुष जतलाती 
इंसानों की ज़ात नहीं 
व्यक्तिगत पसंद भी कुछ है  
ये समझने की औकात नहीं 
न सुनकर बौखलाहट में 
हैवान हो जाना ठीक बात नहीं 

- स्वर्ण दीप बोगल 

Friday 14 July 2017

कविता - माना मंज़िल बहुत दूर है



माना मंज़िल बहुत दूर है
ये माना कि डगर में दुश्वारियाँ भी हैं
शायद कोई साथी भी न मिले
राह में साथ चलने को
साथ मिलकर मुसीबतों से लड़ने को
मगर फिर भी मायूस न होंगे हम
क्योंकि ये अहसास है हमें कि
राह मुश्किल ही सही मगर ठीक तो है

बहाव के साथ तो हैं तैर लेते सभी
मगर सीखा हमने है चलना बहाव के विरुद्ध
इसीलिए चलते रहे हम बिना थके
क्योंकि यकीन है हमें कि है डगर ये सही
इसीलिए कि कभी न कभी साथी आएंगे सही
और बढ़ चलेंगें मिलकर साथ लड़ने को तभी
बस यही उम्मीद लिये सदा चलते रहे
सच्ची राह के लिए, मंज़िल पाने के लिये

- स्वर्ण दीप बोगल

Thursday 13 July 2017

#MOVIE #REVIEW – #MOM (2017)

#MOVIE #REVIEW – #MOM (2017)

Today we are here with the review of one more movie based onthe women issue released last Friday namely #MOM (2017), starring Veteran actress Sridevi, Akhay Khann, Nawazuddin Siddiqui and Pakistani debutant actrors Adnan Saddiqui & Sajal Ali in lead roles.  The movie is directed by directed by debutatnt director Ravi Udyawar and Co-produced by Boney Kapoor & others. The movie is based on the alarming sexual violence on women in our society.

PLOT:
It is a story of a teenaged student Arya Sabrawal (Sajal Ali), who got raped by her classmate Mohit and his associates, one among whom is a criminal. The culprits are committing the heinous crime inhumanly dumped Arya into a drain presuming her to be dead.

The culprits by corrupt means are declared innocent by the Court and Arya’s Step-mother Devaki (Sridevi), a school teacher, aggrieved by the pain of her daughter decides to avenge Arya’s Rape in her own way which is not an easy job. She is helped by a private detective i.e. Nawazuddin Siddiqui but Crime Branch Officer Akshay Khanna comes in there way.

How Arya’s Mom is able to avenge her daughter’s culprits is the film all about.

ANALYSIS:
The movie made a point about the judicial system of the country where rapists are got freed by the Courts and the victim is traumatised. Like many such movies, the present movie justifies taking law of the land into hands which I think is a grim situation for the largest democracy of the world.

The movie shows a 21st century strong Mom Devaki, unlike earlier times mom who would have pleaded the culprit “Bhagwan ke liye shod do”. This is the Mom who doesn’t hesitiate to avenge her daughter’s rapists when even Court has let them free. The movie appropriately justifies the dialogue “Kyonki Bhagwan har jagah nahin pahunch paate, isiliye unhone Maa banaai”.

The movie is inspired by the reality of our society. I wish every woman who has been the victim of eve-teasing, molestation, rape, domestic violence or Sexual Harassment could get justice and no Devaki need to take law into her hands.

The film is gripping and some of its scenes make you shed tears especially Sridevi’s hospital scene where she gets to know that her daughter has been raped. Background music by A.R. Rahmaan is just spot on.


WHAT’S GOOD:
Gripping story, great direction and spectacular acting by all the star cast especially Nawazuddin Siddiqui, who is a treat to watch in a new avatar.

LOOP HOLES, WHAT I THINK:
Sridevi’s hindi accent as a North Indian mother.

STAR PERFORMANCES:
Sridevi once again proves that she one of the greatest actors, the Bollywood has ever produced. She has played Devaki with such a perfection that it look like she is actually living the character.

As always Nawazuddin Siddiqui is outstanding. He has played the role of a private detective with perfection. I just loved it.

Akshay Khanna too impressed with role of a tough cop.

Pakistani actors Adnan Siddiqui also played the role of grief stricken father brilliantly and Sajal Ali also put up a nice performance.

FINAL WORDS:
A Must watch movie. We need Moms like Devaki, who can protect their daughters from the wolves roaming here and there.

My ratings for this movie is 3 out of 5 stars.

So keep following the page, good day till the next review


Bogal | R E V I E W S

Friday 7 July 2017

कविता - मेरी जीवन संगिनी

कविता - मेरी जीवन संगिनी

यूँ तो ज़िन्दगी में हैं दुश्वारियां कईं
एक जंग है पल पल
कभी खुद से तो समाज से कभी
पर महसूस होता नहीं दर्द मुझे
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए

यूँ तो संघर्ष है जीवन प्रयन्त
कभी दाल रोटी का 
तो कभी सर ढकने के लिए छत का
पर महसूस नहीं होती इतनी तकलीफ
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए

यूँ तो रोज़ मर्रा की भाग दौड़ भी
तोड़ देती है हिम्मत, जब घिर जाता हूँ 
निजी या सामाजिक परेशानियों में
पर उभर जाता हूँ इन परेशानियों से भी
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए

खुद को जलाकर मोमबत्ती की तरह
तुम जलती रही मेरे लिए मेरे अपनों के लिए
अपनी तकलीफों की न कर परवाह
तो सह पाया मैं हर सुख दुख को 
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए

तुमने मेरे जीवन को इक राह दिखाई जीने की
अंधकार मिटाने को इक लौ दिखाई तुमने थी
अब प्रेम तुम्हारा काफी है सुख दुख से लड़ने को
और कट जाएगा जीवन सुख से
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए


- स्वर्ण दीप बोगल

Wednesday 5 July 2017

कविता - हाँ कलर्क हूँ मैं

कविता - हाँ कलर्क हूँ मैं

फाइलों में सदा दबा हुआ,
फिर भी निष्ठा से लगा हुआ,
सारा सारा दिन हर रोज़,
हाँ, कलर्क हूँ मैं,
कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं।

राज्य हो या कोई भी विभाग,
अपनी सूझ बूझ से चलाने वाला,
हर काम को दिशा दिखाने वाला,
तभी तंत्र की रीढ़ कहलाने वाला,
हाँ, कलर्क हूँ मैं,
कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं।

कभी दफ्तर में जल्दी जाता हूँ,
तो कभी देर से वापिस आता हूँ,
मेहनत ईमानदारी से काम करके भी,
अपने काम की पूरी इज़्ज़त कहाँ पाता हूँ,
हाँ, कलर्क हूँ मैं,
कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं।

समान शैक्षणिक योग्यता व काम वाले
अन्य वर्गों से कम वेतन पाकर भी,
जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य निभाकर भी,
जाने क्यों तिरस्करित नज़रें सहता हूँ,
हाँ, कलर्क हूँ मैं,
कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं।

इंसान गलतियों का पुतला है, 
ये आप सब भी और मैं भी जानता हूँ,
मगर ग़लती ऊपर-नीचे कहीं भी हो,
बलि का बकरा मैं ही क्यों बन जाता हूँ,
हाँ, क्लर्क हूँ मैं,
कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं।

माना हम में से कुछ पथभ्रष्ट होंगे,
हाँ, हो सकते है किसी वर्ग से भी,
मगर सभी को बदनाम करना,
ये कोई जायज़ बात तो नहीं,
हाँ, कलर्क हूँ मैं,
कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं।

बहुत हुआ अब सहते सहते,
और न अब सह पाऊंगा,
सम्मानित जीवन व समान अधिकार
पाने को परचम बुलंद उठाऊंगा,
हाँ, कलर्क हूँ मैं,
कोई दोयम दर्जे का नागरिक नहीं।

- स्वर्ण दीप बोगल 

Sunday 2 July 2017

कविता - तू सर्वशक्तिमान है

कविता - तू सर्वशक्तिमान है

कबसे सुनते हैं तू सर्वशक्तिमान है,
ज़र्रे ज़र्रे में भी तू विराजमान है।
बड़ा छोटा न कोई है तेरे लिए,
होता सबके सिरों पर तेरा हाथ है।
बिरला टाटा हो या भिखारी कोई,
सारे तेरी सुना मैने संतान हैं।

मगर ज़मीनी हालात बड़े नासाज़ हैं,
यहाँ मिलता सभी को न इंसाफ है।
मेहनतकश जनता यहाँ अभावों में है,
और धन्ना सेठ निठल्ले मौज करें।
इन हालातों को देख लगता कभी,
कि सर्वशक्तिमान शायद निद्रा में है ?

पर प्रश्न उठते हैं अभी तेरे अस्तित्व पर,
मज़लूम मर रहे हैं जब धर्म के नाम पर।
चढ़ रहे हैं जब असंख्य बेरोजगार युवा,
योग्य होने पे भी बलि भ्रष्टाचार की,
फंदा चूम रहा रोज़ अन्नदाता कोई,
प्रश्न उठते हैं तब भी तेरे अस्तित्व पर,

प्रश्न मेरे भी तो अप्रासंगिक नहीं,
भीड़ डरती जब नहीं किसी सरकार से।
भय और भी घेरता मन मस्तिष्क को,
जब कार्यवाही नहीं, निंदा व अपीलें ही हों।
इन हालातों में भी जब तू खामोश है,
कैसे कह दूँ तू है और सर्वशक्तिमान है।।

- स्वर्ण दीप बोगल