कविता - युवा शक्ति
वर्षों से सुनता आया हूँ
कि विश्वशक्ति बनेगा भारत
क्योंकि सबसे विशाल
युवा जनसमूह का देश है यह
मगर बस कहने भर से
कैसे ये हो पायेगा
जब देश का पढ़ा लिखा युवा
एक एक नौकरी के लिए
हज़ारों की भीड़ में धक्के खायेगा
सरकारी क्षेत्र की क्या बात करें
निजी क्षेत्र का भी बुरा हाल है
कम नौकरियों के चलते फैला
वहां भी अब भाई भतीजावाद है
फौज खड़ी है युवा बेरोजगारों की
अपनी शारीरिक व मानसिक
कुशलता बाज़ार में बेचने को
मगर योग्य को भी काम मिलना
अब यहाँ कौन सा आसान है
युवाओं का तो अब बुरा हाल है
क्योंकि पिता द्वारा लिया गया
शिक्षा पर ऋण भी तो याद है
किसी भी तरह काम मिले यही आस है
टूटती आस युवाओं की
क्या क्या कहर ढा रही है
कहीं नशों में, कहीं अवसाद में,
तो जुर्म की दलदल में
गहरा उनको धंसा रही है
मगर कैसे विश्वशक्ति बनेगा भारत
जब सक्षम युवा विदेशों में
काम करने को मजबूर है
जब सरकारों के पास योजनाएं तो हैं
मगर ज़मीनी हक़ीक़त में
काम के अवसर ही नहीं
मिल पा रहे या तलाशे जा रहे हैं
जब संसाधन नहीं युवा जनसमूह के लिए,
काम के लिये, जीवन यापन करने के लिये
- स्वर्ण दीप बोगल
वर्षों से सुनता आया हूँ
कि विश्वशक्ति बनेगा भारत
क्योंकि सबसे विशाल
युवा जनसमूह का देश है यह
मगर बस कहने भर से
कैसे ये हो पायेगा
जब देश का पढ़ा लिखा युवा
एक एक नौकरी के लिए
हज़ारों की भीड़ में धक्के खायेगा
सरकारी क्षेत्र की क्या बात करें
निजी क्षेत्र का भी बुरा हाल है
कम नौकरियों के चलते फैला
वहां भी अब भाई भतीजावाद है
फौज खड़ी है युवा बेरोजगारों की
अपनी शारीरिक व मानसिक
कुशलता बाज़ार में बेचने को
मगर योग्य को भी काम मिलना
अब यहाँ कौन सा आसान है
युवाओं का तो अब बुरा हाल है
क्योंकि पिता द्वारा लिया गया
शिक्षा पर ऋण भी तो याद है
किसी भी तरह काम मिले यही आस है
टूटती आस युवाओं की
क्या क्या कहर ढा रही है
कहीं नशों में, कहीं अवसाद में,
तो जुर्म की दलदल में
गहरा उनको धंसा रही है
मगर कैसे विश्वशक्ति बनेगा भारत
जब सक्षम युवा विदेशों में
काम करने को मजबूर है
जब सरकारों के पास योजनाएं तो हैं
मगर ज़मीनी हक़ीक़त में
काम के अवसर ही नहीं
मिल पा रहे या तलाशे जा रहे हैं
जब संसाधन नहीं युवा जनसमूह के लिए,
काम के लिये, जीवन यापन करने के लिये
- स्वर्ण दीप बोगल
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