Friday 7 July 2017

कविता - मेरी जीवन संगिनी

कविता - मेरी जीवन संगिनी

यूँ तो ज़िन्दगी में हैं दुश्वारियां कईं
एक जंग है पल पल
कभी खुद से तो समाज से कभी
पर महसूस होता नहीं दर्द मुझे
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए

यूँ तो संघर्ष है जीवन प्रयन्त
कभी दाल रोटी का 
तो कभी सर ढकने के लिए छत का
पर महसूस नहीं होती इतनी तकलीफ
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए

यूँ तो रोज़ मर्रा की भाग दौड़ भी
तोड़ देती है हिम्मत, जब घिर जाता हूँ 
निजी या सामाजिक परेशानियों में
पर उभर जाता हूँ इन परेशानियों से भी
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए

खुद को जलाकर मोमबत्ती की तरह
तुम जलती रही मेरे लिए मेरे अपनों के लिए
अपनी तकलीफों की न कर परवाह
तो सह पाया मैं हर सुख दुख को 
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए

तुमने मेरे जीवन को इक राह दिखाई जीने की
अंधकार मिटाने को इक लौ दिखाई तुमने थी
अब प्रेम तुम्हारा काफी है सुख दुख से लड़ने को
और कट जाएगा जीवन सुख से
क्योंकि तुम अंग संग हो सदा मेरे लिए


- स्वर्ण दीप बोगल

2 comments:

  1. No words to describe...SD...take a bow dear...absolutely fantastic...kuch bhi kehna..suraj ko lo dikhana...best ever...

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