माना मंज़िल बहुत दूर है
ये माना कि डगर में दुश्वारियाँ भी हैं
शायद कोई साथी भी न मिले
राह में साथ चलने को
साथ मिलकर मुसीबतों से लड़ने को
मगर फिर भी मायूस न होंगे हम
क्योंकि ये अहसास है हमें कि
राह मुश्किल ही सही मगर ठीक तो है
बहाव के साथ तो हैं तैर लेते सभी
मगर सीखा हमने है चलना बहाव के विरुद्ध
इसीलिए चलते रहे हम बिना थके
क्योंकि यकीन है हमें कि है डगर ये सही
इसीलिए कि कभी न कभी साथी आएंगे सही
और बढ़ चलेंगें मिलकर साथ लड़ने को तभी
बस यही उम्मीद लिये सदा चलते रहे
सच्ची राह के लिए, मंज़िल पाने के लिये
- स्वर्ण दीप बोगल
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