Sunday 2 July 2017

कविता - तू सर्वशक्तिमान है

कविता - तू सर्वशक्तिमान है

कबसे सुनते हैं तू सर्वशक्तिमान है,
ज़र्रे ज़र्रे में भी तू विराजमान है।
बड़ा छोटा न कोई है तेरे लिए,
होता सबके सिरों पर तेरा हाथ है।
बिरला टाटा हो या भिखारी कोई,
सारे तेरी सुना मैने संतान हैं।

मगर ज़मीनी हालात बड़े नासाज़ हैं,
यहाँ मिलता सभी को न इंसाफ है।
मेहनतकश जनता यहाँ अभावों में है,
और धन्ना सेठ निठल्ले मौज करें।
इन हालातों को देख लगता कभी,
कि सर्वशक्तिमान शायद निद्रा में है ?

पर प्रश्न उठते हैं अभी तेरे अस्तित्व पर,
मज़लूम मर रहे हैं जब धर्म के नाम पर।
चढ़ रहे हैं जब असंख्य बेरोजगार युवा,
योग्य होने पे भी बलि भ्रष्टाचार की,
फंदा चूम रहा रोज़ अन्नदाता कोई,
प्रश्न उठते हैं तब भी तेरे अस्तित्व पर,

प्रश्न मेरे भी तो अप्रासंगिक नहीं,
भीड़ डरती जब नहीं किसी सरकार से।
भय और भी घेरता मन मस्तिष्क को,
जब कार्यवाही नहीं, निंदा व अपीलें ही हों।
इन हालातों में भी जब तू खामोश है,
कैसे कह दूँ तू है और सर्वशक्तिमान है।।

- स्वर्ण दीप बोगल

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