कविता - चंद पंक्तियाँ कुदरत पे
एक दिन,
मुझे सहसा ही ख्याल आया
एक दिन,
मुझे सहसा ही ख्याल आया
कि चंद पंक्तियाँ
कुदरत के नज़ारों पर लिखी जाएं
जो देते हैं हमें
सांस लेने के लिए हवा
चंद पंक्तियाँ
उन वृक्षों पर भी लिखी जाएं
जिनकी वजह हैं हमें
मिलता है पानी पीने के लिए
चंद पंक्तियाँ
चंद पंक्तियाँ
उन नदियों व झरनों पर भी लिखी जाएं
जहाँ से प्राप्त होता है हमें
फल सब्जियां व अनाज
चंद पंक्तियाँ
उन खेत खलिहानों पर भी लिखी जाएं
तो मैं निकल पड़ा घर से
ताकि कुदरत की गोद में
बैठ कर कुछ लिखा जाए
मगर विकास के नाम पर
अपनी साँसों को दांव पर रखकर कटते
और सिर्फ पर्यावरण दिवस पर चर्चा में दिखते
हरे भरे वृक्षों के बारे में क्या लिखा जाए
खत्म होती हरियाली,
औऱ बढ़ते कंक्रीट के जंगलों को देख
घुलते ग्लेशियरों को
और बढ़ते तापमान को देखकर
समझ नही आता
की कुदरत के नज़ारों के बारे में क्या लिखा जाए
- स्वर्ण दीप बोग़ल
बैठ कर कुछ लिखा जाए
मगर विकास के नाम पर
अपनी साँसों को दांव पर रखकर कटते
और सिर्फ पर्यावरण दिवस पर चर्चा में दिखते
हरे भरे वृक्षों के बारे में क्या लिखा जाए
मगर थोड़े से लालच के नाम पर
बिना किसी प्यासे की परवाह किये
तबाह होती फसलों की परवाह किये
दूषित होती
ज़हरीली नदियों व नहरों के बारे में क्या लिखा जाए
बिना किसी प्यासे की परवाह किये
तबाह होती फसलों की परवाह किये
दूषित होती
ज़हरीली नदियों व नहरों के बारे में क्या लिखा जाए
खत्म होती हरियाली,
औऱ बढ़ते कंक्रीट के जंगलों को देख
घुलते ग्लेशियरों को
और बढ़ते तापमान को देखकर
समझ नही आता
की कुदरत के नज़ारों के बारे में क्या लिखा जाए
- स्वर्ण दीप बोग़ल
Nice poem
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