Tuesday 27 June 2017

कविता - झूठ का कारोबार

कविता - झूठ का कारोबार

कुछ इस तरह फैला है 
झूठ का कारोबार
कि कोई सच भी बोले अगर अब
तो झूठ ही लगता है 

कोई भाषण देते बोलता है 
तो  कोई राशन देते हुए 
कोई सड़कों पे बोलता है 
तो कोई बंद दरवाज़ों में 
पर निरंतर जारी है झूठ का प्रचार

घरों में भी जारी है
तो कार्यस्थलों पर भी है
पर्दों में भी है 
तो ज़ाहिर भी है
चलता धड़ल्ले से झूठ का व्यापार

माँ बाप बच्चों से बोलते है 
तो बच्चे माँ बाप से 
आपसी विश्वास का मिट रहा आधार 
कुछ इस तरह फैला है 
झूठ का कारोबार

झूठ का बोलबाला है
तो सच्चाई का साथ देने वाले का
पड़ता मुसीबतों से पाला है
इसलिये तो फैला है झूठ का जंजाल

हर ओर खुशियां ही खुशियां
प्रगति और विकास दिखे चहुँ ओर
जो है सच्चाई से कोसों दूर
कुछ इस तरह फैला झूठ की भ्रमजाल 
कि कोई सच भी बोले अगर अब
तो झूठ ही लगता है 

- स्वर्ण दीप बोगल

No comments:

Post a Comment